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ता य॒ज्ञमा शुचि॑भिश्चक्रमा॒णा रथ॑स्य भा॒नुं रु॑रुचू॒ रजो॑भिः। पु॒रू वरां॒स्यमि॑ता॒ मिमा॑ना॒ऽपो धन्वा॒न्यति॑ याथो॒ अज्रा॑न् ॥२॥

English Transliteration

tā yajñam ā śucibhiś cakramāṇā rathasya bhānuṁ rurucū rajobhiḥ | purū varāṁsy amitā mimānāpo dhanvāny ati yātho ajrān ||

Pad Path

ता। य॒ज्ञम्। आ। शुचि॑ऽभिः। च॒क्र॒मा॒णा। रथ॑स्य। भा॒नुम्। रु॒रु॒चुः॒। रजः॑ऽभिः। पु॒रु। वरां॒सि। अमि॑ता। मिमा॑ना। अ॒पः। धन्वा॑नि। अति॑। या॒थः॒। अज्रा॑न् ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:62» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे दोनों कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको ! तुम जो (शुचिभिः) पवित्र गुणों से (यज्ञम्) सर्वसङ्गत व्यवहार को (आ, चक्रमाणा) आक्रमण करते हुए (रथस्य) रमणीय जगत् के (भानुम्) प्रकाश करनेवाले को प्रकाश करनेवाले वा (रजोभिः) परमाणु वा लोकों के साथ (पुरु) बहुत (अमिता) अपरिमित (वरांसि) स्वीकार करने योग्य पदार्थों को (मिमाना) निर्माण करनेवाले वा (अपः) जल जो (धन्वानि) अन्तरिक्षस्थ हैं उनको और (अज्रान्) प्रक्षिप्त पदार्थों को (याथः) प्राप्त होते और जिनसे सब (रुरुचुः) रुचते हैं (ताः) उनको (अति) अत्यन्त प्राप्त होते हो ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! यदि तुम वायु और बिजुली को यथावत् जानो तो अमित आनन्द को प्राप्त होओ ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! युवां यौ शुचिभिर्यज्ञमा चक्रमाणा रथस्य भानुं प्रदीपकौ रजोभिः पुर्वमिता वरांसि मिमानाऽपो धन्वान्यज्रान् याथो याभ्यां सर्वाणि रुरुचुस्ताऽति याथः ॥२॥

Word-Meaning: - (ता) तौ (यज्ञम्) सर्वं सङ्गतं व्यवहारम् (आ) समन्तात् (शुचिभिः) पवित्रैर्गुणैः (चक्रमाणा) क्रमयितारौ (रथस्य) रमणीयस्य जगतः (भानुम्) प्रकाशकम् (रुरुचुः) रोचन्ते (रजोभिः) परमाणुभिर्लोकैर्वा सह (पुरु) पुरूणि बहूनि (वरांसि) वरणीयानि वस्तूनि (अमिता) अमितान्यपरिमितानि (मिमाना) निर्मातारौ (अपः) जलानि (धन्वानि) अन्तरिक्षस्थानि (अति) (याथः) प्राप्नुथः (अज्रान्) प्रक्षिप्तान् ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यदि यूयं वायुविद्युतौ यथावद्विजानीत तर्ह्यमितमानन्दं प्राप्नुयात ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -हे माणसांनो ! जर तुम्ही वायू विद्युतला यथायोग्य जाणाल तर अत्यंत आनंद प्राप्त कराल. ॥ २ ॥