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अन्त॑रैश्च॒क्रैस्तन॑याय व॒र्तिर्द्यु॒मता या॑तं नृ॒वता॒ रथे॑न। सनु॑त्येन॒ त्यज॑सा॒ मर्त्य॑स्य वनुष्य॒तामपि॑ शी॒र्षा व॑वृक्तम् ॥१०॥

English Transliteration

antaraiś cakrais tanayāya vartir dyumatā yātaṁ nṛvatā rathena | sanutyena tyajasā martyasya vanuṣyatām api śīrṣā vavṛktam ||

Pad Path

अन्त॑रैः। च॒क्रैः। तन॑याय। व॒र्तिः। द्यु॒ऽमता॑। आ। या॒त॒म्। नृ॒ऽवता॑। रथे॑न। सनु॑त्येन। त्यज॑सा। मर्त्य॑स्य। व॒नु॒ष्य॒ताम्। अपि॑। शी॒र्षा। व॒वृ॒क्त॒म् ॥१०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:62» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सभा सेनापति जगत् के उपकार के लिये क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो राजा लोग (अन्तरैः) भिन्न-भिन्न (चक्रैः) लोकों के घूमने के लिये परिधियों के वर्त्तमान (द्युमता) प्रकाशवान् (नृवता) जिसमें उत्तम नर विद्यमान उस (रथेन) रमणीय विमानादि यान वा (सनुत्येन) प्रेरणा करने योग्य के साथ वर्त्तमान (त्यजसा) त्याग के साथ (मर्त्यस्य) मनुष्य के (तनयाय) पुत्र के लिये (वर्त्तिः) मार्ग को (आ, यातम्) प्राप्त होवें और मार्ग का विधान कर (वनुष्यताम्) क्रोध करने वा बाधावालों के (शीर्षा) शिरों को (अपि) भी (ववृक्तम्) छिन्न-भिन्न करें, उनका सबको सत्कार करना चाहिये ॥१०॥
Connotation: - यदि सभासेनापति, मनुष्य-सन्तानों का ब्रह्मचर्य और विद्याभ्यास आदि का प्रबन्ध करें तो सब विद्वान् होकर अनेक उत्तम कार्य करने और दुष्टों तथा शत्रुओं के निवारने को समर्थ हों ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सभासेनेशौ जगदुपकाराय किं कुर्यातामित्याह ॥

Anvay:

यौ राजानावन्तरैश्चक्रैर्वर्त्तमानेन द्युमता नृवता रथेन सनुत्येन त्यजसा मर्त्यस्य तनयाय वर्त्तिरायातं मार्गं विधाय वनुष्यतां शीर्षाऽपि ववृक्तं तौ सर्वैः सत्कर्तव्यौ ॥१०॥

Word-Meaning: - (अन्तरैः) भिन्नैः (चक्रैः) लोकभ्रमणाय परिध्याख्यैः (तनयाय) पुत्राय (वर्त्तिः) मार्गम् (द्युमता) प्रकाशवता (आ) (यातम्) आगच्छतम् (नृवता) उत्तमा नरो विद्यन्ते यस्मिँस्तेन (रथेन) रमणीयेन विमानादियानेन (सनुत्येन) सप्रेरणीयेन (त्यजसा) त्यागेन (मर्त्यस्य) मनुष्यस्य (वनुष्यताम्) क्रुध्यतां बाधमानानां वा। वनुष्यतीति क्रुध्यतिकर्मा। (निघं०२.१२) (अपि) (शीर्षा) शिरांसि (ववृक्तम्) छिनत्तम् ॥१०॥
Connotation: - यदि सभासेनेशौ मनुष्यसन्तानानां ब्रह्मचर्यविद्याऽभ्यासादिप्रबन्धं कुर्यातां तर्हि सर्वे विद्वांसो भूत्वाऽनेकान्युत्तमानि कार्याणि साद्धुं दुष्टाञ्छत्रून्निवारयितुं च शक्नुवन्ति ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जर सभेच्या सेनापतीने माणसांच्या संतानाचा ब्रह्मचर्य व विद्याभ्यास इत्यादींचा प्रबंध केला तर सर्व विद्वान होऊन उत्तम कार्य करण्यास आणि दुष्टांचे, शत्रूंचे निवारण करण्यास समर्थ होऊ शकतात. ॥ १० ॥