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आ॒प॒प्रुषी॒ पार्थि॑वान्यु॒रु रजो॑ अ॒न्तरि॑क्षम्। सर॑स्वती नि॒दस्पा॑तु ॥११॥

English Transliteration

āpapruṣī pārthivāny uru rajo antarikṣam | sarasvatī nidas pātu ||

Pad Path

आ॒ऽप॒प्रुषी॑। पार्थि॑वानि। उ॒रु। रजः॑। अ॒न्तरि॑क्षम्। सर॑स्वती। नि॒दः। पा॒तु॒ ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:61» Mantra:11 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:32» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसी और क्या करती है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (पार्थिवानि) अन्तरिक्ष में प्रसिद्ध हुए वा विदित हुए (उरु) बहुत (रजः) परमाणु आदि पदार्थों को तथा (अन्तरिक्षम्) आकाश को (आपप्रुषी) सब ओर से व्याप्त (सरस्वती) विद्या और उत्तम शिक्षायुक्त वाणी हम लोगों को (निदः) निन्दकों से (पातु) बचावे ॥११॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो वाणी सर्वत्र आकाश में व्याप्त है, उसको जान के इससे किसी की भी निन्दा अर्थात् गुणों में दोषारोपण और दोषों में गुणारोपण कभी न करो ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सा कीदृशी किं करोतीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्याः ! पार्थिवान्युरु रजोऽन्तरिक्षमापप्रुषी सरस्वत्यस्मान् निदः पातु ॥११॥

Word-Meaning: - (आपप्रुषी) समन्ताद् व्याप्ता (पार्थिवानि) पृथिव्यामन्तरिक्षे भवानि विदितानि वा (उरु) बहु (रजः) परमाण्वादीन् (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (सरस्वती) विद्यासुशिक्षिता वाक् (निदः) निन्दकेभ्यः (पातु) ॥११॥
Connotation: - हे मनुष्या ! या वाणी सर्वत्राकाशे व्याप्ताऽस्ति तां विदित्वाऽनया कस्यापि निन्दामर्थाद् गुणेषु दोषारोपणं दोषेषु गुणारोपणं च कदाचिन्मा कुर्वन्तु ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

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Connotation: - हे माणसांनो ! जी वाणी आकाशात सर्वत्र व्याप्त आहे ती जाणून कुणाची निंदा अर्थात गुणांमध्ये दोषारोपण व दोषांमध्ये गुणारोपण कधी करू नये. ॥ ११ ॥