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आ नो॒ गव्ये॑भि॒रश्व्यै॑र्वस॒व्यै॒३॒॑रुप॑ गच्छतम्। सखा॑यौ दे॒वौ स॒ख्याय॑ शं॒भुवे॑न्द्रा॒ग्नी ता ह॑वामहे ॥१४॥

English Transliteration

ā no gavyebhir aśvyair vasavyair upa gacchatam | sakhāyau devau sakhyāya śambhuvendrāgnī tā havāmahe ||

Pad Path

आ। नः॒। गव्ये॑भिः। अश्व्यैः॑। व॒स॒व्यैः॑। उप॑। ग॒च्छ॒त॒म्। सखा॑यौ। दे॒वौ। स॒ख्याय॑। श॒म्ऽभुवा॑। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। ता। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥१४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:60» Mantra:14 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:29» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को किन के साथ मित्रता करनी चाहिये, इस विषयको कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको (इन्द्राग्नी) सूर्य और बिजुली के समान वर्त्तमान वा (शम्भुवा) सुख की भावना करानेवाले (देवौ) विद्वान् (सखायौ) मित्र (नः) हम लोगों को (सख्याय) मित्रता के लिये (गव्येभिः) गो घृत आदि पदार्थ (अश्व्यैः) अश्वादिकों में हुए गुणों और (वसव्यैः) धनादिकों में हुए सुखों के साथ वर्त्तमान तुम दोनों को हम लागे (हवामहे) बुलाते हैं (ता) वे तुम दोनों हम लोगों के (उप, आ, गच्छतम्) समीप आओ ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विद्वानों के मित्र होकर पदार्थविद्या सिद्ध करने की इच्छा करते हैं, वे अवश्य विज्ञान को प्राप्त होते हैं ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कैः सह मित्रता कार्येत्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकविन्द्राग्नी इव वर्त्तमानौ शम्भुवा देवौ सखायौ नः सख्याय गव्येभिरश्व्यैर्वसव्यैः सह वर्त्तमानौ युवां वयं हवामहे ता युवामस्मानुपाऽऽगच्छतम् ॥१४॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (नः) अस्मान् (गव्येभिः) गोर्विकारैर्घृतादिभिः (अश्व्यैः) अश्वेषु भवैर्गुणैः (वसव्यैः) वसुषु द्रव्येषु भवैः सुखैः (उप) (गच्छतम्) (सखायौ) सुहृदौ (देवौ) विद्वांसौ (सख्याय) मित्रत्वाय (शम्भुवा) सुखंभावुकौ (इन्द्राग्नी) सूर्य्यविद्युताविव वर्त्तमानौ (ता) तौ (हवामहे) आह्वयामहे ॥१४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विद्वन्मित्रा भूत्वा पदार्थविद्यां चिकीर्षन्ति तेऽवश्यं विज्ञानं प्राप्नुवन्ति ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विद्वानांचे मित्र बनून पदार्थविद्या सिद्ध करण्याची इच्छा बाळगतात ती अवश्य विज्ञान प्राप्त करतात. ॥ १४ ॥