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उ॒भा वा॑मिन्द्राग्नी आहु॒वध्या॑ उ॒भा राध॑सः स॒ह मा॑द॒यध्यै॑। उ॒भा दा॒तारा॑वि॒षां र॑यी॒णामु॒भा वाज॑स्य सा॒तये॑ हुवे वाम् ॥१३॥

English Transliteration

ubhā vām indrāgnī āhuvadhyā ubhā rādhasaḥ saha mādayadhyai | ubhā dātārāv iṣāṁ rayīṇām ubhā vājasya sātaye huve vām ||

Pad Path

उ॒भा। वा॒म्। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। आ॒ऽहु॒वध्यै॑। उ॒भा। राध॑सः। स॒ह। मा॒द॒यध्यै॑। उ॒भा। दा॒तारौ॑। इ॒षाम्। र॒यी॒णाम्। उ॒भा। वाज॑स्य। सा॒तये॑। हु॒वे॒। वा॒म् ॥१३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:60» Mantra:13 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:29» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर शिल्पीजन उनसे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे शिल्पविद्या के अध्यापक और उपदेश करनेवालो ! जैसे (वाम्) तुम्हारे समीप स्थिर होकर (आहुवध्यै) आह्वान करने को (उभा) दोनों (इन्द्राग्नी) सूर्य्य और बिजुली को (राधसः) धन सम्बन्धी (मादयध्यै) आनन्द देने को (उभा) दोनों को (सह) एक साथ (उभा) और दोनों को (इषाम्) अन्नादि पदार्थों के वा (रयीणाम्) धनादि पदार्थों के (दातारौ) देनेवाले तथा (उभा) दोनों को (वाजस्य) विज्ञान वा सङ्ग्राम के (सातये) संविभाग के लिये मैं (हुवे) स्वीकार करता हूँ, वैसे ही (वाम्) तुम दोनों को इस विद्या का बोध कराऊँ ॥१३॥
Connotation: - जो मनुष्य वायु और बिजुली को यथावत् जान के कार्य्यों में उनका अच्छे प्रकार प्रयोग करते हैं, वे श्रीपति होते हैं ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः शिल्पिनस्ताभ्यां किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे शिल्पविद्याऽध्यापकोपदेशकौ ! यथा वां युवयोः समीपे स्थित्वाऽऽहुवध्या उभेन्द्राग्नी राधसो मादयध्या उभा सह उभेषां रयीणां दातारा उभा वाजस्य सातयेऽहं हुवे तथोभा वामेतद्विद्यां बोधयेयम् ॥१३॥

Word-Meaning: - (उभा) उभौ (वाम्) युवयोः (इन्द्राग्नी) सूर्य्यविद्युतौ (आहुवध्यै) आह्वयितुम् (उभा) (राधसः) धनस्य (सह) (मादयध्यै) आनन्दयितुम् (उभा) (दातारौ) (इषाम्) अन्नादीनाम् (रयीणाम्) धनानाम् (उभा) (वाजस्य) विज्ञानस्य सङ्ग्रामस्य वा (सातये) संविभागाय (हुवे) आदद्मि (वाम्) युवाम् ॥१३॥
Connotation: - ये मनुष्या वायुविद्युतौ यथावद्विदित्वा कार्येषु सम्प्रयुञ्जते ते श्रीपतयो जायन्ते ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे वायू व विद्युतला ठीकठीक जाणून कार्यात चांगल्या प्रकारे संयुक्त करतात. ती श्रीमंत होतात. ॥ १३ ॥