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अध॑ जि॒ह्वा पा॑पतीति॒ प्र वृष्णो॑ गोषु॒युधो॒ नाशनिः॑ सृजा॒ना। शूर॑स्येव॒ प्रसि॑तिः क्षा॒तिर॒ग्नेर्दु॒र्वर्तु॑र्भी॒मो द॑यते॒ वना॑नि ॥५॥

English Transliteration

adha jihvā pāpatīti pra vṛṣṇo goṣuyudho nāśaniḥ sṛjānā | śūrasyeva prasitiḥ kṣātir agner durvartur bhīmo dayate vanāni ||

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Pad Path

अध॑। जि॒ह्वा। पा॒प॒ती॒ति॒। प्र। वृष्णः॑। गो॒षु॒ऽयुधः॑। न। अ॒शनिः॑। सृ॒जा॒ना। शूर॑स्यऽइव। प्रऽसि॑तिः। क्षा॒तिः। अ॒ग्नेः। दुः॒ऽवर्तुः॑। भी॒मः। द॒य॒ते॒। वना॑नि ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:6» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! (गोषुयुधः) वाणियों में युद्ध करनेवाले (वृष्णः) बलिष्ठों को (जिह्वा) वाणी (न) नहीं (पापतीति) अत्यन्त वारवार प्राप्त होती है (अध) इसके अनन्तर (अशनिः) बिजुली जैसे वैसे (सृजाना) उत्पन्न किया गया (शूरस्येव) शूरवीर के सदृश (अग्नेः) अग्नि के समान प्रकाशमान (दुर्वर्त्तुः) दुःख के साथ वर्त्तमान से युक्त का (प्रसितिः) प्रकृष्ट बन्धन (क्षातिः) और नाश (भीमः) भयंकर हुआ (वनानि) वनों को (प्र, दयते) नष्ट करता है ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो मनुष्य धर्म्म से पतित न होकर धार्म्मिकों में शान्त और दुष्टों में अग्नि के सदृश भयंकर होते हैं, वे ही बलवान् गिने जाते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! गोषुयुधो वृष्णो जिह्वा न पापतीत्यधाऽशनिरिव सृजाना शूरस्येवाऽग्नेर्दुर्वर्त्तुः प्रसितिः क्षातिर्भीमो वनानि प्र दयते ॥५॥

Word-Meaning: - (अध) आनन्तर्य्ये (जिह्वा) वाणी (पापतीति) प्रकर्षेण पुनः पुनः पतति गच्छन्ति (प्र) (वृष्णः) बलिष्ठान् (गोषुयुधः) ये गोषु युध्यन्ते तान् (न) निषेधे (अशनिः) विद्युत् (सृजाना) निष्पादिता (शूरस्येव) (प्रसितिः) प्रकृष्टं बन्धनम् (क्षातिः) क्षयः (अग्नेः) पावकवत्प्रकाशमानस्य (दुर्वर्त्तुः) दुःखेन वर्त्तमानयुक्तस्य (भीमः) भयङ्करः (दयते) हिनस्ति (वनानि) ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये मनुष्या धर्मात् पतिता न भूत्वा धार्मिकेषु शान्ता दुष्टेष्वग्निरिव भयङ्करा जायन्ते त एव बलवन्तो गण्यन्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जी माणसे धर्मापासून न ढळता धार्मिकांना शांत व दुष्टांना अग्नीप्रमाणे भयंकर असतात तीच बलवान समजली जातात. ॥ ५ ॥