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प्र नव्य॑सा॒ सह॑सः सू॒नुमच्छा॑ य॒ज्ञेन॑ गा॒तुमव॑ इ॒च्छमा॑नः। वृ॒श्चद्व॑नं कृ॒ष्णया॑मं॒ रुश॑न्तं वी॒ती होता॑रं दि॒व्यं जि॑गाति ॥१॥

English Transliteration

pra navyasā sahasaḥ sūnum acchā yajñena gātum ava icchamānaḥ | vṛścadvanaṁ kṛṣṇayāmaṁ ruśantaṁ vītī hotāraṁ divyaṁ jigāti ||

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Pad Path

प्र। नव्य॑सा। सह॑सः। सू॒नुम्। अच्छ॑। य॒ज्ञेन॑। गा॒तुम्। अवः॑। इ॒च्छमा॑नः। वृ॒श्चत्ऽव॑नम्। कृ॒ष्णया॑मम्। रुश॑न्तम्। वी॒ती। होता॑रम्। दि॒व्यम्। जि॒गा॒ति॒ ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:6» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:8» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सात ऋचावाले छठे सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अब मनुष्यों को सन्तान किस प्रकार करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यज्ञेन) सङ्गतिरूप यज्ञ से (गातुम्) पृथिवी और (अवः) रक्षण की (इच्छमानः) इच्छा करता हुआ (नव्यसा) अत्यन्त नवीन व्यवहार से (सहसः) बलवान् के (सूनुम्) सन्तान को और (कृष्णयामम्) आकर्षित किया मार्ग जिससे ऐसे (रुशन्तम्) हिंसा करते हुए (वृश्चद्वनम्) काटता है वन जिसमें उसके समान (वीती) व्याप्ति से (होतारम्) देनेवाले (दिव्यम्) शुद्धव्यवहारों में प्रकट हुए को (अच्छ) अच्छे प्रकार (प्र, जिगाति) प्राप्त होता है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! आप लोग ब्रह्मचर्य्य से बलिष्ठ होकर सन्तानों को उत्पन्न करो जिससे रोगरहित, बलयुक्त और उत्तम स्वभावयुक्त सन्तान होकर आप लोगों को निरन्तर सुखयुक्त करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनष्यैस्सन्तानः कथमुत्पादनीय इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यज्ञेन गातुमव इच्छमानो नव्यसा सहसः सूनुं कृष्णयामं रुशन्तं वृश्चद्वनमिव वीती होतारं दिव्यमच्छा प्र जिगाति ॥१॥

Word-Meaning: - (प्र) (नव्यसा) अतिशयेन नवीनेन (सहसः) बलवतः (सूनुम्) अपत्यम् (अच्छा) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (यज्ञेन) सङ्गतिमयेन (गातुम्) पृथिवीम् (अवः) रक्षणम् (इच्छमानः) अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (वृश्चद्वनम्) वृश्चच्छिन्दद् वनं यस्मिन् (कृष्णयामम्) कृष्णा कर्षिता यामा येन तम् (रुशन्तम्) हिंसन्तम् (वीती) वीत्या व्याप्त्या (होतारम्) दातारम् (दिव्यम्) शुद्धेषु व्यवहारेषु भवम् (जिगाति) गच्छति ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यूयं ब्रह्मचर्य्येण बलिष्ठा भूत्वा सन्तानान् जनयत यतोऽरोगाणि बलवन्ति सुशीलान्यपत्यानि भूत्वा युष्मान् सुखयेयुः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी व विद्वानाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही ब्रह्मचर्य पाळून बलवान व्हा. त्यानंतर संतानांना जन्म द्या. ज्यामुळे निरोगी, बलवान, सुशील अपत्ये होतील व तुम्ही सुखी व्हाल. ॥ १ ॥