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उत्पू॒षणं॑ युवामहे॒ऽभीशूँ॑रिव॒ सार॑थिः। म॒ह्या इन्द्रं॑ स्व॒स्तये॑ ॥६॥

English Transliteration

ut pūṣaṇaṁ yuvāmahe bhīśūm̐r iva sārathiḥ | mahyā indraṁ svastaye ||

Pad Path

उत्। पू॒षण॑म्। यु॒वा॒म॒हे॒। अ॒भीशू॑न्ऽइव। सार॑थिः। म॒ह्यै। इन्द्र॑म्। स्व॒स्तये॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:57» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:23» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या प्राप्त होने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (मह्यै) पृथिवी और (स्वस्तये) सुख के लिये (सारथिः) नियन्ता अर्थात् एक स्थान से दूसरे स्थान को पहुँचानेवाला (अभीशूनिव) रश्मियों के समान (पूषणम्) भूमि को और (इन्द्रम्) विद्युत् रूप अग्नि को (उत्, युवामहे) उत्तमता से अगल करते हैं, वैसे ही तुम भी करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। यदि मनुष्य भूमि और बिजुली का विभाग करे तो बहुत सुख पावें ॥६॥ इस सूक्त में भूमि और बिजुली के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सत्तावनवाँ सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं प्राप्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा वयं मह्यै स्वस्तये सारथिरभीशूनिव पूषणमिन्द्रं चोद्युवामहे तथैव यूयमपि कुरुत ॥६॥

Word-Meaning: - (उत्) (पूषणम्) भूमिम् (युवामहे) विभजामहे (अभीशूनिव) रश्मीनिव (सारथिः) नियन्ता (मह्यै) पृथिव्यै (इन्द्रम्) विद्युतम् (स्वस्तये) सुखाय ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यदि मनुष्या भूमिविद्युतोर्विभागं कुर्युस्तर्हि पुष्कलं सुखं प्राप्नुयुरिति ॥६॥ अत्र भूमिविद्युद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तपञ्चाशत्तमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जर माणसांनी भूमी व विद्युतचे विभाजन केले तर पुष्कळ सुख प्राप्त होईल. ॥ ६ ॥