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आ ते॑ स्व॒स्तिमी॑मह आ॒रेअ॑घा॒मुपा॑वसुम्। अ॒द्या च॑ स॒र्वता॑तये॒ श्वश्च॑ स॒र्वता॑तये ॥६॥

English Transliteration

ā te svastim īmaha āreaghām upāvasum | adyā ca sarvatātaye śvaś ca sarvatātaye ||

Pad Path

आ। ते॒। स्व॒स्तिम्। ई॒म॒हे॒। आ॒रेऽअ॑घाम्। उप॑ऽवसुम्। अ॒द्य। च॒। स॒र्वऽता॑तये। श्वः। च॒। स॒र्वऽता॑तये ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:56» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:22» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सब को विद्वानों के लिये क्या इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (सर्वतातये) सम्पूर्ण सुख सिद्ध करनेवाले यज्ञ के लिये (ते) तेरे लिये (अद्या) आज (च) और (श्वः) आगामी दिन (च) भी (सर्वतातये) सर्वसुख करनेवाले और पदार्थ के लिये (आरेअघाम्) जिसमें पाप दूर पहुँचे तथा (उपावसुम्) वा समीप धन आदि पदार्थ विद्यमान उस (स्वस्तिम्) सुख को हम (आ, ईमहे) अच्छे प्रकार माँगते हैं ॥६॥
Connotation: - हे विद्वन् ! जिससे आप पापाचरण से अलग तथा सबके कल्याण करनेवाले हैं, इससे आपके लिये सदैव सुख की इच्छा हम लोग करें ॥६॥ इस सूक्त में उपदेशक, श्रोता और पूषा शब्द के अर्थ का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छप्पनवाँ सूक्त और बाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सर्वैविद्वदर्थं किमेष्टव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! सर्वतातये तेऽद्या च श्वश्च सर्वतातये आरेअघामुपावसुं स्वस्तिं वयमा ईमहे ॥६॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (ते) तुभ्यम् (स्वस्तिम्) सुखम् (ईमहे) याचामहे (आरेअघाम्) आरे दूरेऽघं पापं यस्याम् (उपावसुम्) उप समीपे वसूनि यस्यां ताम् (अद्या) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (च) (सर्वतातये) सम्पूर्णसुखसाधकाय यज्ञाय (श्वः) आगामिदिने (च) तस्मादप्यग्रे (सर्वतातये) सर्वसुखकराय ॥६॥
Connotation: - हे विद्वन् ! यतो भवान् पापाचरणात् पृथक्सर्वस्य कल्याणकर्त्ताऽस्ति तस्माद्भवदर्थं सदैव सुखं वयमिच्छेमेति ॥६॥ अत्रोपदेशकश्रोतृपूषार्थवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्पञ्चाशत्तमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! तुम्ही पापाचरणापासून पृथक करणारे व सर्वांचे कल्याण करणारे आहात. त्यामुळे तुमच्या सुखाची आम्ही सदैव कामना करावी. ॥ ६ ॥