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यद॒द्य त्वा॑ पुरुष्टुत॒ ब्रवा॑म दस्र मन्तुमः। तत्सु नो॒ मन्म॑ साधय ॥४॥

English Transliteration

yad adya tvā puruṣṭuta bravāma dasra mantumaḥ | tat su no manma sādhaya ||

Pad Path

यत्। अ॒द्य। त्वा॒। पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒। ब्रवा॑म। द॒स्र॒। म॒न्तु॒ऽमः॒। तत्। सु। नः॒। मन्म॑। सा॒ध॒य॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:56» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पुरुष्टुत) बहुतों से प्रशंसा को प्राप्त (दस्र) दुःख को नष्ट करनेवाले ! (मन्तुमः) प्रशस्तविज्ञानयुक्त (अद्य) आज हम (यत्) जिस ज्ञान को (त्वा) तुझ को (ब्रवाम) कहें वह तू (नः) हमारे लिये (तत्) उस (मन्म) विज्ञान को (सु, साधय) अच्छे प्रकार सिद्ध कर ॥४॥
Connotation: - मनुष्यों को सर्वदा सम्मुख वा अन्यत्र सत्य ही कहना चाहिये, जिससे सत्य ज्ञान सर्वत्र बढ़े ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे पुरुष्टुत दस्र ! मन्तुमोऽद्य वयं यत्त्वा ब्रवाम स त्वं नस्तन्मन्म सु साधय ॥४॥

Word-Meaning: - (यत्) यत् ज्ञानम् (अद्य) (त्वा) त्वाम् (पुरुष्टुत) बहुभिः प्रशंसित (ब्रवाम) वदेम (दस्र) दुःखोपक्षयितः (मन्तुमः) प्रशस्तविज्ञानयुक्त (तत्) (सु) (नः) अस्मभ्यम् (मन्म) विज्ञानम् (साधय) ॥४॥
Connotation: - मनुष्यैः सर्वदा सम्मुखेऽन्यत्र वा सत्यमेव वाच्यं येन सत्यं ज्ञानं सर्वत्र वर्धेत ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी सदैव समोर किंवा मागे सत्यच बोलले पाहिजे. ज्यामुळे सत्य ज्ञान सर्वत्र वाढावे. ॥ ४ ॥