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आजासः॑ पू॒षणं॒ रथे॑ निशृ॒म्भास्ते ज॑न॒श्रिय॑म्। दे॒वं व॑हन्तु॒ बिभ्र॑तः ॥६॥

English Transliteration

ājāsaḥ pūṣaṇaṁ rathe niśṛmbhās te janaśriyam | devaṁ vahantu bibhrataḥ ||

Pad Path

आ। अ॒जासः॑। पू॒षण॑म्। रथे॑। नि॒ऽशृ॒म्भाः। ते। ज॒न॒ऽश्रिय॑म्। दे॒वम्। व॒ह॒न्तु॒। बिभ्र॑तः ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:55» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:21» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्या क्या जान के किसको प्राप्त होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (निशृम्भाः) नित्यसम्बन्ध करनेवाले (अजासः) पुष्टिकर्त्ता सूर्य्य के किरणरूप अश्व (पूषणम्) पुष्ट करनेवाले सूर्य्य वा (जनश्रियम्) जिसके मनुष्यों की शोभा विद्यमान उस (देवम्) दिव्यगुणवाले विद्वान् के (बिभ्रतः) धारक अर्थात् पुष्टि करनेवालों और धारण करनेवालों को (रथे) रमणीय जगत् में (आ, वहन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त करें (ते) वे सर्व चाही हुई वस्तु को प्राप्त होते हैं ॥६॥
Connotation: - हे विद्वानो ! तुम शरीर और आत्मा की पुष्टि करनेवाले पदार्थों को जानकर और उनसे उपयोग लेकर ऐश्वर्य्य को प्राप्त होओ ॥६॥ इस मन्त्र में पूषा और आदित्य के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पचपनवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं विदित्वा किं प्राप्नुवन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ये निशृम्भा अजासः पूषणं जनश्रियं देवं बिभ्रतो धर्त्तारं रथ आ वहन्तु ते सर्वमिष्टं प्राप्नुवन्ति ॥६॥

Word-Meaning: - (आ) (अजासः) पुष्टिकर्त्तुरश्वाः (पूषणम्) पोषकं सूर्य्यम् (रथे) रमणीये जगति (निशृम्भाः) नित्यं सम्बद्धारः (ते) (जनश्रियम्) जनानां शोभा लक्ष्मीर्यस्य तम् (देवम्) दिव्यगुणं विद्वांसम् (वहन्तु) प्राप्नुवन्तु (बिभ्रतः) धारकान् पोषकान् ॥६॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! यूयं शरीरात्मपुष्टिकरान् पदार्थान् विदित्वोपयुज्यैश्वर्यं प्राप्नुत ॥६॥ अत्र पूषादित्यगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चपञ्चाशत्तमं सूक्तमेकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥