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यो अ॑स्मै ह॒विषावि॑ध॒न्न तं पू॒षापि॑ मृष्यते। प्र॒थ॒मो वि॑न्दते॒ वसु॑ ॥४॥

English Transliteration

yo asmai haviṣāvidhan na tam pūṣāpi mṛṣyate | prathamo vindate vasu ||

Pad Path

यः। अ॒स्मै॒। ह॒विषा। अवि॑धत्। न। तम्। पू॒षा। अपि॑। मृ॒ष्य॒ते॒। प्र॒थ॒मः। वि॒न्द॒ते॒। वसु॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:54» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कौन महान् श्रीमान् होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (यः) जो (हविषा) देने वा लेने से (अस्मै) इसके लिये (वसु) बहुत धन का (अविधत्) विधान करता है वा (प्रथमः) पहिला कारुक धन (विन्दते) पाता है (तम्) उसको (पूषा) पुष्टि करनेवाला (अपि) भी (न) नहीं (मृष्यते) सहता है ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो पहिले से शिल्पविद्या को पाकर क्रिया से पदार्थों का निर्माण करता है, वह बहुत धन को प्राप्त होता है, उसके सदृश पुष्ट कोई नहीं होता है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

को महाञ्छ्रीमान् भवतीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यो हविषाऽस्मै वस्वविधत् प्रथमो वसु विन्दते तं पूषाऽपि न मृष्यते ॥४॥

Word-Meaning: - (यः) (अस्मै) (हविषा) दानेनादानेन वा (अविधत्) विदधाति (न) निषेधे (तम्) (पूषा) (अपि) (मृष्यते) सहते (प्रथमः) आदिमः शिल्पी (विन्दते) प्राप्नोति (वसु) बहुधनम् ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यः प्रथमतः शिल्पविद्यां प्राप्य क्रियया पदार्थान् निर्मिमीते स पुष्कलां श्रियं प्राप्नोति तत्सदृशः पुष्टः कोऽपि न भवति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो प्रथम शिल्पविद्या प्राप्त करून पदार्थांची निर्मिती करतो त्याला खूप धन प्राप्त होते. त्याच्यासारखे समृद्ध कोणी नसते. ॥ ४ ॥