Go To Mantra

परि॑ पू॒षा प॒रस्ता॒द्धस्तं॑ दधातु॒ दक्षि॑णम्। पुन॑र्नो न॒ष्टमाज॑तु ॥१०॥

English Transliteration

pari pūṣā parastād dhastaṁ dadhātu dakṣiṇam | punar no naṣṭam ājatu ||

Pad Path

परि॑। पू॒षा। प॒रस्ता॑त्। हस्त॑म्। द॒धा॒तु॒। दक्षि॑णम्। पुनः॑। नः॒। न॒ष्टम्। आ। अ॒ज॒तु॒ ॥१०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:54» Mantra:10 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:10


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

किन गुणों से कैसे मनुष्य होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (पूषा) पुष्टि करनेवाला दानशील (दक्षिणम्) दाहिने (हस्तम्) हाथ को धारण करे वह (पुनः) फिर (नष्टम्) नष्ट हुई भी और वस्तु को (परस्तात्) पीछे से (परि, दधातु) सब ओर से धारण करे (नः) हम लोगों को फिर (आ, अजतु) अच्छे प्रकार दे वा प्राप्त हो ॥१०॥
Connotation: - इस लोक में जो देनेवाला है, वही उत्तम है, जो लेनेवाला है, वह अधम है और जो चोरी से प्राप्त करनेवाला है, वह निकृष्ट है, यह जानना चाहिये ॥१०॥ इस सूक्त में विद्वानों का सङ्ग, शिल्पियों की प्रशंसा, उत्तम गुणों की याचना, हिंसा छोड़ना और दान की प्रशंसा कही है, इससे इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौवनवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

कैर्गुणैः कीदृशा मनुष्या भवन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः पूषा दाता दानसमये दक्षिणं हस्तं दधातु स पुनर्नष्टमपि द्रव्यं परस्तात् परि दधातु नोऽस्मान् पुनराजतु ॥१०॥

Word-Meaning: - (परि) सर्वतः (पूषा) पोषकः (परस्तात्) (हस्तम्) (दधातु) (दक्षिणम्) (पुनः) (नः) अस्मभ्यमस्मान् वा (नष्टम्) अदृष्टम् (आ,अजतु) समन्ताद्ददातु प्राप्नोतु वा ॥१०॥
Connotation: - अस्मिँल्लोके यो दाता स एवोत्तमो यो ग्रहीता सोऽधमो यश्च चौर्य्येण प्रापकः स निकृष्टो वर्त्तत इति वेद्यम् ॥१०॥ अत्र विद्वत्सङ्गः शिल्पिप्रशंसोत्तमगुणयाचनं हिंसात्यागो दानप्रशंसा चोक्ता अत एतस्य सूक्तस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुःपञ्चाशत्तमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या जगात जो देणारा असतो तो उत्तम असतो. जो घेतो तो अधम असतो व जो चोरी करतो व प्राप्ती करतो तो निकृष्ट असतो, हे जाणा. ॥ १० ॥