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न तद्दि॒वा न पृ॑थि॒व्यानु॑ मन्ये॒ न य॒ज्ञेन॒ नोत शमी॑भिरा॒भिः। उ॒ब्जन्तु॒ तं सु॒भ्वः१॒॑ पर्व॑तासो॒ नि ही॑यतामतिया॒जस्य॑ य॒ष्टा ॥१॥

English Transliteration

na tad divā na pṛthivyānu manye na yajñena nota śamībhir ābhiḥ | ubjantu taṁ subhvaḥ parvatāso ni hīyatām atiyājasya yaṣṭā ||

Pad Path

न। तत्। दि॒वा। न। पृ॒थि॒व्या। अनु॑। म॒न्ये॒। न। य॒ज्ञेन॑। न। उ॒त। शमी॑भिः। आ॒भिः। उ॒ब्जन्तु॑। तम्। सु॒ऽभ्वः॑। पर्व॑तासः। नि। ही॒य॒ता॒म्। अ॒ति॒ऽया॒जस्य॑। य॒ष्टा ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:52» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सत्रह ऋचावाले बावनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में किस से अधिक सुख होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (सुभ्वः) जो अच्छे होते हैं, वे (पर्वतासः) मेघ (तम्) उसको (उब्जन्तु) कुटिल करें, वैसे (अतियाजस्य) जो अतीव यज्ञ करने योग्य है उसका (यष्टा) सङ्ग करनेवाला वर्त्तमान है वह (तत्) उस कारण से (दिवा) दिन में (न) न (नि, हीयताम्) छोड़ने योग्य है (न) न (पृथिव्या) भूमि से (न) न (यज्ञेन) होम आदि कर्म से (न) न (उत) और (आभिः) क्रियाओं से वा (शमीभिः) कर्मों से छोड़ने योग्य है, उसे मैं (अनु, मन्ये) अनुकूलता से मानता हूँ ॥१॥
Connotation: - जो सुख मेघों से उत्पन्न होता है, वह सुख न दिवस में, न पृथिवी, न सङ्गति, न कर्म से होता है, इससे यज्ञ करनेवाला ही सुखभागी होता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ केनाऽधिकं सुखं जायत इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा सुभ्वः पर्वतासस्तमुब्जन्तु तथा योऽतियाजस्य यष्टा वर्त्तते स तद्दिवा न नि हीयतां न पृथिव्यां न यज्ञेन नोताऽऽभिर्न शमीभिर्हीयतामहमनु मन्ये ॥१॥

Word-Meaning: - (न) (तत्) (दिवा) दिवसे (न) (पृथिव्या) भूम्या (अनु) (मन्ये) (न) (यज्ञेन) होमादिना (न) (उत) (शमीभिः) कर्मभिः (आभिः) क्रियाभिः (उब्जन्तु) कुटिलं कुर्वन्तु (तम्) (सुभ्वः) ये सुष्ठु भवन्ति (पर्वतासः) मेघाः (नि) (हीयताम्) त्यज्यताम् (अतिवाजस्य) योऽतिशयेन यष्टुं योग्यस्य यज्ञस्य (यष्टा) सङ्गन्ता ॥१॥
Connotation: - यत्सुखं मेघैर्जायते तत्सुखं न दिवसे न पृथिव्या न सङ्गत्या न कर्मणा भवति तस्माद्यजमानो हि सुखभाग्भवति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विश्वदेवाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - मेघापासून जे सुख उत्पन्न होते ते सुख दिवस, पृथ्वी, संगती, कर्म यापासून होत नाही तर यज्ञ करणारा यजमानच या सुखाचा भागीदार असतो. ॥ १ ॥