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मा नो॒ वृका॑य वृ॒क्ये॑ समस्मा अघाय॒ते री॑रधता यजत्राः। यू॒यं हि ष्ठा र॒थ्यो॑ नस्त॒नूनां॑ यू॒यं दक्ष॑स्य॒ वच॑सो बभू॒व ॥६॥

English Transliteration

mā no vṛkāya vṛkye samasmā aghāyate rīradhatā yajatrāḥ | yūyaṁ hi ṣṭhā rathyo nas tanūnāṁ yūyaṁ dakṣasya vacaso babhūva ||

Pad Path

मा। नः॒। वृका॑य। वृ॒क्ये॑। स॒म॒स्मै॒। अ॒घ॒ऽय॒ते। री॒र॒ध॒त॒। य॒ज॒त्राः॒। यू॒यम्। हि। स्थ। र॒थ्यः॑। नः॒। त॒नूना॑म्। यू॒यम्। दक्ष॑स्य। वच॑सः। ब॒भू॒व ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:51» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को किसकी इच्छा नहीं करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यजत्राः) सङ्ग करनेवालो ! (यूयम्) तुम (वृकाय) चोर के लिये वा (वृक्ये) चोरों में उत्पन्न हुए व्यवहार के निमित्त (अघायते) अघ की इच्छा करनेवाले (समस्मै) सर्वजन के लिये (नः) हम लोगों को (मा) मत (रीरधता) नष्ट करो तथा (नः) हमारे (तनूनाम्) शरीरों के (दक्षस्य) बलयुक्त (वचसः) वचन का (रथ्यः) रथों में साधु उत्तम जो व्यवहार उसके समान (यूयम्) तुम (स्था) हो (हि) जिससे सुख करनेवाले (बभूव) होओ ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्यों को चोर आदि दुष्टों का व्यवहार कभी नहीं कर्त्तव्य है और जो धर्मात्मा, अजातशत्रु अर्थात् जिनके शत्रु नहीं हुआ तथा सबकी रक्षा करनेवाले हों, उनकी तुम निरन्तर सेवा करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं नैषितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे यजत्रा ! यूयं वृकाय वृक्ये समस्मा अघायते नोऽस्मान् मा रीरधता नस्तनूनां दक्षस्य वचसो रथ्य इव यूयं स्था हि सुखकारका बभूव ॥६॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (नः) अस्मान् (वृकाय) स्तेनाय (वृक्ये) वृकेषु स्तेनेषु भवे व्यवहारे (समस्मै) सर्वस्मै (अघायते) आत्मनोऽघमिच्छते (रीरघता) भृशं हिंसत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (यजत्राः) सङ्गन्तारः (यूयम्) (हि) यतः (स्था) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (रथ्यः) रथेषु साधुः (नः) अस्माकम् (तनूनाम्) शरीराणाम् (यूयम्) (दक्षस्य) बलयुक्तस्य (वचसः) वचनस्य (बभूव) भवत ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वैर्मनुष्यैः स्तेनादीनां दुष्टानां व्यवहारः कदाचिन्न कर्त्तव्यः ये च धर्म्मात्मानोऽजातशत्रवः सर्वेषां रक्षका भवेयुस्तान् यूयं सततं सेवध्वम् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी दुष्टाबरोबर व्यवहार कधी करू नये. जे धर्मात्मा, अजातशत्रू, सर्वांचे रक्षक असतात त्यांची सतत सेवा करावी. ॥ ६ ॥