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त्वे वसू॑नि पुर्वणीक होतर्दो॒षा वस्तो॒रेरि॑रे य॒ज्ञिया॑सः। क्षामे॑व॒ विश्वा॒ भुव॑नानि॒ यस्मि॒न्त्सं सौभ॑गानि दधि॒रे पा॑व॒के ॥२॥

English Transliteration

tve vasūni purvaṇīka hotar doṣā vastor erire yajñiyāsaḥ | kṣāmeva viśvā bhuvanāni yasmin saṁ saubhagāni dadhire pāvake ||

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Pad Path

त्वे इति॑। वसू॑नि। पु॒रु॒ऽअ॒णी॒क॒। हो॒तः॒। दो॒षा। वस्तोः॑। आ। ई॒रि॒रे॒। य॒ज्ञिया॑सः। क्षाम॑ऽइव। विश्वा॑। भुव॑नानि। यस्मि॑न्। सम्। सौभ॑गानि। द॒धि॒रे। पा॒व॒के ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:5» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को किसके होने पर क्या प्राप्त होना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पुर्वणीक) अनेक सेनाओं से युक्त (होतः) दान करनेवाले राजन् ! (यस्मिन्) जिन (पावके) अग्नि के सदृश पवित्र (त्वे) आपके रक्षक रहने पर (यज्ञियासः) यज्ञ के अनुष्ठान करने के योग्य प्रजाजन (दोषा) रात्रि में और (वस्तोः) दिन में (क्षामेव) जैसे पृथिवी, वैसे (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवनानि) लोकों में प्रकट और पञ्चभूत अधिकरण जिनके उन प्राणियों की और (वसूनि) धनों को (आ, ईरिरे) प्रेरणा करते और (सौभगानि) श्रेष्ठ ऐश्वर्य्यों के भावों को (सम्, दधिरे) सम्यक् धारण करते हैं, उनका हम लोग सत्कार करें ॥२॥
Connotation: - राजा के रक्षक रहने पर ही प्रजाजन प्रतिदिन वृद्धि को प्राप्त होते और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होकर सुखयुक्त होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः कस्मिन् सति किं प्राप्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे पुर्वणीक होतर्भूपते ! यस्मिन् पावके त्वे रक्षके सति यज्ञियासो दोषा वस्तोः क्षामेव विश्वा भुवनानि वसून्येरिरे सौभगानि सं दधिरे तं वयं सत्कुर्याम ॥२॥

Word-Meaning: - (त्वे) त्वयि रक्षके (वसूनि) धनानि (पुर्वणीक) पुरूण्यनेकानि सैन्यानि यस्य तत्सम्बुद्धौ (होतः) दातः (दोषा) रात्रौ (वस्तोः) दिने (आ, ईरिरे) प्रेरयन्ति (यज्ञियासः) यज्ञानुष्ठानं कर्तुं योग्याः (क्षामेव) यथा पृथिवी (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) लोकजातानि भूताधिकरणानि (यस्मिन्) (सम्) (सौभगानि) श्रेष्ठानामैश्वर्य्याणां भावान् (दधिरे) धरन्ति (पावके) वह्निरिव पवित्रस्तस्मिन् ॥२॥
Connotation: - राजनि रक्षके सत्येव प्रजाजनाः प्रतिदिनं वर्धन्त ऐश्वर्यं लब्ध्वा सुखिनो भवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजा रक्षक असल्यास प्रजेची प्रत्येक दिवशी वृद्धी होते व ऐश्वर्य प्राप्त करून ते सुखी होतात. ॥ २ ॥