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पावी॑रवी क॒न्या॑ चि॒त्रायुः॒ सर॑स्वती वी॒रप॑त्नी॒ धियं॑ धात्। ग्नाभि॒रच्छि॑द्रं शर॒णं स॒जोषा॑ दुरा॒धर्षं॑ गृण॒ते शर्म॑ यंसत् ॥७॥

English Transliteration

pāvīravī kanyā citrāyuḥ sarasvatī vīrapatnī dhiyaṁ dhāt | gnābhir acchidraṁ śaraṇaṁ sajoṣā durādharṣaṁ gṛṇate śarma yaṁsat ||

Pad Path

पावी॑रवी। क॒न्या॑। चि॒त्रऽआ॑युः। सर॑स्वती। वी॒रऽप॑त्नी। धिय॑म्। धा॒त्। ग्नाभिः॑। अच्छि॑द्रम्। श॒र॒णम्। स॒ऽजोषाः॑। दुः॒ऽआ॒धर्ष॑म्। गृ॒ण॒ते। शर्म॑। यं॒स॒त् ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:49» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कैसी स्त्री सुख देवे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (पावीरवी) शुद्ध करनेवाली (चित्रायुः) चित्र विचित्र जिसकी आयु वह (सरस्वती) विज्ञानयुक्त (वीरपत्नी) वीर पतिवाली (कन्या) मनोहर (ग्नाभिः) सुन्दर शिक्षित वाणियों से (धियम्) शास्त्रोत्थ प्रज्ञा उत्तम बुद्धि वा कर्म को (धात्) धारण करती है वा जो (गृणते) स्तुति करनेवाले मेरे लिये (अच्छिद्रम्) छेदरहित व्यवहार को तथा जो (सजोषाः) समान प्रीति की सेवनेवाली होती हुई स्तुति करनेवाले मेरे लिये (शरणम्) आश्रय को वा जो (दुराधर्षम्) दुःख से धृष्टता के योग्य (शर्म) घर वा सुख को (यंसत्) देती है, वही मुझसे सदैव सत्कार करने योग्य है ॥७॥
Connotation: - जो विदुषी शुभगुण, कर्म, स्वभाववाली कन्या हो, उसी को वीर पुरुष विवाहे, जिसका सङ्ग वा प्रीति कभी नष्ट न हो तथा जो सर्वदा सुख दे, वह पत्नी पति से सर्वदा सत्कार करने योग्य है ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कीदृशी स्त्री सुखं दद्यादित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! या पावीरवी चित्रायुः सरस्वती वीरपत्नी कन्या ग्नाभिर्धियं धाद्या गृणते मेऽच्छिद्रं या सजोषाः सती गृणते मे शरणं दुराधर्षं शर्म यंसत्सैव मया सदैव सत्कर्त्तव्या ॥७॥

Word-Meaning: - (पावीरवी) शोधयित्री (कन्या) कमनीया (चित्रायुः) चित्रामायुर्यस्याः सा (सरस्वती) विज्ञानाढ्या (वीरपत्नी) वीरः पतिर्यस्याः सा (धियम्) शास्त्रोत्थां प्रज्ञामुत्तमं कर्म वा (धात्) दधाति (ग्नाभिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः (अच्छिद्रम्) छेदरहितम् (शरणम्) आश्रयम् (सजोषाः) समानप्रीतिसेविका (दुराधर्षम्) दुःखेन धर्षितुं योग्यम् (गृणते) स्तावकाय (शर्म) गृहं सुखं वा (यंसत्) ददाति ॥७॥
Connotation: - या विदुषी शुभगुणकर्मस्वभावा कन्या स्यात्तामेव वीरपुरुष उद्वहेत्। यस्याः सङ्गप्रीती कदाचिन्न नश्येतां या सर्वदा सुखं दद्यात्सा पत्नी पत्या यथावत् सत्कर्त्तव्या ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -जी शुभ, गुण, कर्म स्वभावाची कन्या असेल तिच्याशीच वीर पुरुषाने विवाह करावा. जिची संगत किंवा प्रेम कधी नष्ट होत नाही तसेच नेहमी सुख देते त्या पत्नीचा पतीने सदैव सत्कार करावा. ॥ ७ ॥