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भुव॑नस्य पि॒तरं॑ गी॒र्भिरा॒भी रु॒द्रं दिवा॑ व॒र्धया॑ रु॒द्रम॒क्तौ। बृ॒हन्त॑मृ॒ष्वम॒जरं॑ सुषु॒म्नमृध॑ग्घुवेम क॒विने॑षि॒तासः॑ ॥१०॥

English Transliteration

bhuvanasya pitaraṁ gīrbhir ābhī rudraṁ divā vardhayā rudram aktau | bṛhantam ṛṣvam ajaraṁ suṣumnam ṛdhag ghuvema kavineṣitāsaḥ ||

Pad Path

भुव॑नस्य। पि॒तर॑म्। गीः॒ऽभिः। आ॒भिः। रु॒द्रम्। दिवा॑। व॒र्धय॑। रु॒द्रम्। अ॒क्तौ। बृ॒हन्त॑म्। ऋ॒ष्वम्। अ॒जर॑म्। सु॒ऽसु॒म्नम्। ऋध॑क्। हु॒वे॒म॒। क॒विना॑। इ॒षि॒तासः॑ ॥१०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:49» Mantra:10 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:6» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कौन प्रशंसा करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जैसे (कविना) विद्वान् से (इषितासः) प्रेरणा किये हुए हम लोग (आभिः) इन वर्त्तमान (गीर्भिः) वाणियों से (भुवनस्य) संसार के (पितरम्) पालनेवाले (अक्तौ) रात्रि में (रुद्रम्) दुष्टों को रुलाने और (बृहन्तम्) बढ़ानेवाले (ऋष्वम्) बड़े (अजरम्) जरावस्थारहित (सुषुम्नम्) सुन्दर सुखयुक्त (रुद्रम्) रोग भगानेवाले जन की (ऋधक्) सत्य (हुवेम) स्तुति करें, वैसे इस रुद्र को आप (दिवा) कामना वा विद्यादीप्ति से (वर्धया) बढ़ाओ ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्य विद्वान् से प्रेरणा को पाये हुए विद्या और नम्रता के व्यवहार में वृद्ध होकर सब जगत् के पालनेवाले परमात्मा की सत्य व्यवहार से प्रशंसा करें, जिससे अविनाशी सुख को सब प्राप्त हों ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कः प्रशंसनीयोऽस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यथा कविनेषितासो वयमाभिर्गीर्भिर्भुवनस्य पितरमक्तौ रुद्रं बृहन्तमृष्वमजरं सुषुम्नं रुद्रमृधग्घुवेम तथैतं रुद्रं त्वं दिवा वर्धया ॥१०॥

Word-Meaning: - (भुवनस्य) संसारस्य (पितरम्) पालकम् (गीर्भिः) वाग्भिः (आभिः) वर्त्तमानाभिः (रुद्रम्) दुष्टानां रोदयितारम् (दिवा) कामनया विद्यादीप्त्या वा (वर्धया) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (रुद्रम्) यो रुद्रोगं द्रावयति तम् (अक्तौ) रात्रौ (बृहन्तम्) वर्धकम् (ऋष्वम्) महान्तम् (अजरम्) जराव्याधिरहितम् (सुषुम्नम्) सुष्ठु सुखयुक्तम् (ऋधक्) सत्यम् (हुवेम) स्तूयामहि (कविना) विदुषा (इषितासः) प्रेरिताः सन्तः ॥१०॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वे मनुष्या विद्वत्प्रेरिताः सन्तो विद्याविनयव्यवहारे वृद्धा भूत्वा सर्वस्य जगतः पालकं परमात्मानं सत्येन व्यवहारेण प्रशंसन्तु यतोऽविनाशि सुखं प्राप्ताः सर्वे भवेयुः ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी विद्वानांकडून प्रेरित होऊन सत्य व्यवहार करून विद्या व नम्रता यात वाढ करून सर्व जगाच्या पालनकर्त्या ईश्वराची प्रशंसा करावी. ज्यामुळे सर्वांना अक्षय सुख प्राप्त व्हावे. ॥ १० ॥