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य॒ज्ञाय॑ज्ञा वो अ॒ग्नये॑ गि॒रागि॑रा च॒ दक्ष॑से। प्रप्र॑ व॒यम॒मृतं॑ जा॒तवे॑दसं प्रि॒यं मि॒त्रं न शं॑सिषम् ॥१॥

English Transliteration

yajñā-yajñā vo agnaye girā-girā ca dakṣase | pra-pra vayam amṛtaṁ jātavedasam priyam mitraṁ na śaṁsiṣam ||

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Pad Path

य॒ज्ञाऽय॑ज्ञा। वः॒। अ॒ग्नये॑। गि॒राऽगि॑रा। च॒। दक्ष॑से। प्रऽप्र॑। व॒यम्। अ॒मृत॑म्। जा॒तऽवे॑दसम्। प्रि॒यम्। मि॒त्रम्। न। शं॒सि॒ष॒म् ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:48» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चतुर्थाष्टक के अष्टमाध्याय का आरम्भ है, इसमें बाईस ऋचावाले अड़तालीसवें सूक्त के प्रथम मन्त्र में विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय का वर्णन करते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! (वः) आपके (यज्ञायज्ञा) यज्ञ-यज्ञ में (गिरागिरा, च) और वाणी-वाणी से (अग्नये) अग्नि (दक्षसे) जो कि विलक्षण है, उसके लिये (वयम्) हम लोग प्रयत्न करें। और (अमृतम्) नाश से रहित (जातवेदसम्) जातवेदस् अर्थात् जिससे विद्या उत्पन्न हुई ऐसे अग्नि (प्रियम्) मनोहर (मित्रम्) मित्र के (न) समान तुम लोगों की मैं जैसे (प्रप्र, शंसिषम्) वार-वार प्रशंसा करूँ, वैसे आप भी हम लोगों की प्रशंसा कीजिये ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् जन आप लोगों की प्रीति उत्पन्न करें, वैसे आप भी हमारे कार्य साधने के लिये प्रीति उत्पन्न कीजिये ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! वो यज्ञायज्ञा गिरागिरा चाऽग्नये दक्षसे वयं प्रयतेमह्यमृतं जातवेदसं प्रियं मित्रं न युष्मानहं यथा प्रप्र शंसिषं तथा यूयमप्यस्मान् प्रशंसत ॥१॥

Word-Meaning: - (यज्ञायज्ञा) यज्ञेयज्ञे (वः) युष्माकम् (अग्नये) पावकाय (गिरागिरा) वाचा वाचा (च) (दक्षसे) (प्रप्र) (वयम्) (अमृतम्) नाशरहितम् (जातवेदसम्) जातविद्यम् (प्रियम्) कमनीयम् (मित्रम्) सखायम् (न) इव (शंसिषम्) ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथा विद्वांसो युष्मासु प्रीतिं जनयेयुस्तथा यूयमप्यस्माकं कार्यसाधनाय प्रीतिं जनयत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, मरुत, पूषा, पृश्णि, सूर्य, भूमी, विद्वान, राजा व प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जसे विद्वान लोक तुमच्यात प्रेम भावना उत्पन्न करतात तसे तुम्हीही आमचे कार्य प्रेमाने पूर्ण करा. ॥ १ ॥