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धृ॒षत्पि॑ब क॒लशे॒ सोम॑मिन्द्र वृत्र॒हा शू॑र सम॒रे वसू॑नाम्। माध्यं॑दिने॒ सव॑न॒ आ वृ॑षस्व रयि॒स्थानो॑ र॒यिम॒स्मासु॑ धेहि ॥६॥

English Transliteration

dhṛṣat piba kalaśe somam indra vṛtrahā śūra samare vasūnām | mādhyaṁdine savana ā vṛṣasva rayisthāno rayim asmāsu dhehi ||

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Pad Path

धृ॒षत्। पि॒ब॒। क॒लशे॑। सोम॑म्। इ॒न्द्र॒। वृ॒त्र॒ऽहा। शू॒र॒। स॒म्ऽअ॒रे। वसू॑नाम्। माध्य॑न्दिने। सव॑ने। आ। वृ॒ष॒स्व॒। र॒यि॒ऽस्थानः॑। र॒यिम्। अ॒स्मासु॑। धे॒हि॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:47» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:31» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शूर) भय से रहित (इन्द्र) सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान सेना के स्वामिन् ! जैसे (वृत्रहा) मेघ का नाश करनेवाला (माध्यन्दिने) मध्य दिन में की गई (सवने) प्रेरणा में (वसूनाम्) पृथिवी आदिकों के मध्य से जल को अत्यन्त पीता है, वैसे (समरे) सङ्ग्राम में (धृषत्) ढीठ हुए (कलशे) पात्र में (सोमम्) बड़ी ओषधियों के रस को (पिब) पीजिये और (रयिस्थानः) धनों से युक्त हुए (आ, वृषस्व) बलिष्ठ हूजिये और (अस्मासु) हम लोगों में (रयिम्) धन को (धेहि) धारण करिये ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जैसे मध्याह्न में वर्त्तमान सूर्य्य सम्पूर्ण समीप में वर्त्तमान जगत् को प्रकाशित करता है, वैसे न्याय में वर्त्तमान हुए आप वादी और प्रतिवादी जनों की व्यवस्था करके राजनीति से न्याय को प्रकाशित कीजिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे शूरेन्द्र ! यथा वृत्रहा माध्यन्दिने सवने वसूनां मध्याज्जलमत्यन्तं पिबति तथा समरे धृषत् सन् कलशे सोमं पिब रयिस्थानस्सन्नावृषस्वाऽस्मासु रयिं धेहि ॥६॥

Word-Meaning: - (धृषत्) प्रगल्भः सन् (पिब) (कलशे) पात्रे (सोमम्) महौषधिरसम् (इन्द्र) सूर्यवद्वर्त्तमान सेनेश (वृत्रहा) यो वृत्रं हन्ति (शूर) निर्भय (समरे) सङ्ग्रामे (वसूनाम्) पृथिव्यादीनां मध्यात् (माध्यन्दिने) मध्यं दिने भवे (सवने) प्रेरणे (आ) (वृषस्व) बलिष्ठो भव (रयिस्थानः) रायस्तिष्ठन्ति यस्मिन्त्सः (रयिम्) (अस्मासु) (धेहि) ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! यथा मध्याह्नस्थः सूर्यः सर्वं सन्निहितं जगत्प्रकाशयति तथा न्यायस्थस्सन् वादिप्रतिवादिनां जनानां व्यवस्थां कृत्वा राजनीत्या न्यायं प्रकाशय ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जसा दुपारचा सूर्य निकट असलेल्या सर्व पदार्थांना प्रकाशित करतो तसे न्यायी बनून तू वादी, प्रतिवादी लोकांची व्यवस्था करून राजधर्माप्रमाणे न्याय कर. ॥ ६ ॥