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अ॒यं वि॑दच्चित्र॒दृशी॑क॒मर्णः॑ शु॒क्रस॑द्मनामु॒षसा॒मनी॑के। अ॒यं म॒हान्म॑ह॒ता स्कम्भ॑ने॒नोद्द्याम॑स्तभ्नाद्वृष॒भो म॒रुत्वा॑न् ॥५॥

English Transliteration

ayaṁ vidac citradṛśīkam arṇaḥ śukrasadmanām uṣasām anīke | ayam mahān mahatā skambhanenod dyām astabhnād vṛṣabho marutvān ||

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Pad Path

अ॒यम्। वि॒द॒त्। चि॒त्र॒ऽदृशी॑कम्। अर्णः॑। शु॒क्रऽस॑द्मनाम्। उ॒षसा॑म्। अनी॑के। अ॒यम्। म॒हान्। म॒ह॒ता। स्कम्भ॑नेन। उत्। द्याम्। अ॒स्त॒भ्ना॒त्। वृ॒ष॒भः। म॒रुत्वा॑न् ॥५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:47» Mantra:5 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:30» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (अयम्) यह (वृषभः) वृष्टि करनेवाला (मरुत्वान्) बहुत वायु विद्यमान जिसमें ऐसा सूर्य्य (शुक्रसद्मनाम्) शुद्ध स्थानों और (उषसाम्) प्रभात वेलाओं की (अनीके) सेना में (चित्रदृशीकम्) आश्चर्य्ययुक्त दर्शन जिसका ऐसे (अर्णः) जल को (विदत्) प्राप्त होता है और जो (अयम्) यह (महान्) बड़ा (महता) बड़े (स्कम्भनेन) धारण से (द्याम्) प्रकाश को (उत्, अस्तभ्नात्) ऊपर को उठाया है, उसको कार्य्य का उपयोगी करो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् जनो ! आप लोग सूर्य्य के सदृश प्रातःकाल से लेकर प्रयत्न से विद्याओं को प्रकाशित करके सुख को प्राप्त होओ ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथायं वृषभो मरुत्वान्त्सूर्य्यः शुक्रसद्मनामुषसामनीके चित्रदृशीकमर्णो विदत्। योऽयं महान् महता स्कम्भनेन द्यामुदस्तभ्नात्तं कार्य्योपयोगिनं कुरुत ॥५॥

Word-Meaning: - (अयम्) (विदत्) प्राप्नोति (चित्रदृशीकम्) आश्चर्य्यदर्शनम् (अर्णः) जलम् (शुक्रसद्मनाम्) शुद्धस्थानानाम् (उषसाम्) प्रभातवेलानाम् (अनीके) सैन्ये (अयम्) (महान्) (महता) (स्कम्भनेन) धारणेन (उत्) (द्याम्) (अस्तभ्नात्) स्तभ्नाति (वृषभः) वर्षकः (मरुत्वान्) मरुतो बहवो वायवो विद्यन्ते यस्मिन् सः ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यूयं सूर्य्यवत्प्रातः समयमारभ्य प्रयत्नेन विद्याः प्रकाश्य सुखं लभध्वम् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! तुम्ही सूर्याप्रमाणे प्रातःकालापासूनच प्रयत्नपूर्वक विद्या प्रकट करून सुख प्राप्त करा. ॥ ५ ॥