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उप॑ श्वासय पृथि॒वीमु॒त द्यां पु॑रु॒त्रा ते॑ मनुतां॒ विष्ठि॑तं॒ जग॑त्। स दु॑न्दुभे स॒जूरिन्द्रे॑ण दे॒वैर्दू॒राद्दवी॑यो॒ अप॑ सेध॒ शत्रू॑न् ॥२९॥

English Transliteration

upa śvāsaya pṛthivīm uta dyām purutrā te manutāṁ viṣṭhitaṁ jagat | sa dundubhe sajūr indreṇa devair dūrād davīyo apa sedha śatrūn ||

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Pad Path

उप॑। श्वा॒स॒य॒। पृ॒थि॒वीम्। उ॒त। द्याम्। पु॒रु॒ऽत्रा। ते॒। म॒नु॒ता॒म्। विऽस्थि॑तम्। जग॑त्। सः। दु॒न्दु॒भे॒। स॒ऽजूः। इन्द्रे॑ण। दे॒वैः। दू॒रात्। दवी॑यः। अप॑। से॒ध॒। शत्रू॑न् ॥२९॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:47» Mantra:29 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:35» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:29


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (दुन्दुभे) दुन्दुभि के सदृश गर्जनेवाले ! जैसे (सः) वह जगदीश्वर (पृथिवी) भूमि वा अन्तरिक्ष को और (उत) भी (द्याम्) सूर्य्य वा बिजुली को (विष्ठितम्) विशेष करके स्थित (जगत्) व्यतीत होनेवाले संसार को (मनुताम्) जाने उस ज्ञान से (पुरुत्रा) सम्पूर्ण पदार्थों से हुए (इन्द्रेण) बिजुलीरूप अस्त्र से और (देवैः) विद्वान् वीरों से (सजूः) संयुक्त आप (शत्रून्) शत्रुओं को (दूरात्) दूर से (दवीयः) अति दूर (अप, सेध) हराइये और जो (ते) आपके कल्याण को जाने उसकी उपासना करके सब को (उप, श्वासय) समझाइये ॥२९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! जैसे ईश्वर ने पृथिवी और सूर्यादि सम्पूर्ण संसार को अपनी सत्ता से स्थापित किया, वैसे ही बिजुली सम्पूर्ण द्रव्यों में अभिव्याप्त होकर मध्य में प्रविष्ट है, ईश्वर की उपासना और बिजुली आदि के प्रयोगों से दूर पर स्थित भी शत्रुओं को जीत कर सब को जिलाओ ॥२९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे दुन्दुभे ! यथा स जगदीश्वरः पृथिवीमुत द्यां विष्ठितं जगन्मनुतां तेन पुरुत्रेन्द्रेण देवैः सजूस्त्वं शत्रून् दूराद्दवीयोऽप सेध यस्ते कल्याणं मनुतां तमुपास्य सर्वानुपश्वासय ॥२९॥

Word-Meaning: - (उप) (श्वासय) प्राणय (पृथिवीम्) भूमिमन्तरिक्षं वा (उत) (द्याम्) सूर्य्यं विद्युतं वा (पुरुत्रा) पुरुषु पदार्थेषु भवान् (ते) तव (मनुताम्) विजानातु (विष्ठितम्) विशेषेण स्थितम् (जगत्) यद् गच्छति (सः) (दुन्दुभे) दुन्दुभिरिव गर्ज्जक (सजूः) संयुक्तः (इन्द्रेण) विद्युदस्त्रेण (देवैः) विद्वद्भिर्वीरैः (दूरात्) (दवीयः) अतिशयेन दूरम् (अप) (सेध) अप नय (शत्रून्) ॥२९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यथेश्वरेण पृथिवीसूर्यादि सर्वं जगत्स्वसत्तया स्थापितं तथैव विद्युता मूर्तिमद्द्रव्याण्यभिव्याप्य प्रवर्त्यन्त, ईश्वरोपासनेन विद्युदादिप्रयोगेण दूरस्थानपि शत्रून् विजित्य सकलान् प्रजीवयत ॥२९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! जसे ईश्वराने पृथ्वी व सूर्य इत्यादी संपूर्ण जगाला आपल्या अधिकारात (नियंत्रणात) ठेवलेले आहे तसेच विद्युत संपूर्ण द्रव्यात अभिव्याप्त होऊन त्यात प्रविष्ट असते. ईश्वराची उपासना व विद्युत इत्यादीच्या प्रयोगाने दूर असलेल्या शत्रूंना जिंकून सर्वांना जीवित राहू द्या. ॥ २९ ॥