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यः स॑त्रा॒हा विच॑र्षणि॒रिन्द्रं॒ तं हू॑महे व॒यम्। सह॑स्रमुष्क॒ तुवि॑नृम्ण॒ सत्प॑ते॒ भवा॑ स॒मत्सु॑ नो वृ॒धे ॥३॥

English Transliteration

yaḥ satrāhā vicarṣaṇir indraṁ taṁ hūmahe vayam | sahasramuṣka tuvinṛmṇa satpate bhavā samatsu no vṛdhe ||

Pad Path

यः। स॒त्रा॒ऽहा। विऽच॑र्षणिः। इन्द्र॑म्। तम्। हू॒म॒हे॒। व॒यम्। सह॑स्रऽमुष्क। तुवि॑ऽनृम्ण। सत्ऽप॑ते। भव॑। स॒मत्ऽसु॑। नः॒। वृ॒धे ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:46» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:27» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य सङ्ग्राम में कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहस्रमुष्क) असङ्ख्य पराक्रमवाले (तुविनृम्ण) बहुत धनों से युक्त (सत्पते) विद्वानों के पालनेवाले अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त (यः) जो (विचर्षणिः) विद्वान् मनुष्य (सत्राहा) सत्य दिनों में (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त को पुकारता है, वैसे (तम्) उसकी (वयम्) हम लोग (हूमहे) प्रशंसा करते हैं और आप (समत्सु) सङ्ग्रामों में (नः) हम लोगों की (वृधे) वृद्धि के लिये (भवा) हूजिये ॥३॥
Connotation: - उसी की हम लोग प्रशंसा करते हैं, जो प्रतिदिन हम लोगों की रक्षा करता है और उसी की हम लोग सङ्ग्राम में रक्षा करें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः सङ्ग्रामे कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे सहस्रमुष्क तुविनृम्ण सत्पत इन्द्र ! यो विचर्षणिः सत्राहेन्द्रमाह्वयति तथा तं वयं हूमहे स त्वं समत्सु नो वृधे भवा ॥३॥

Word-Meaning: - (यः) (सत्राहा) सत्यदिनानि (विचर्षणिः) विद्वान् मनुष्यः (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्ययुक्तम् (तम्) (हूमहे) प्रशंसामः (वयम्) (सहस्रमुष्क) असङ्ख्यवीर्य्य (तुविनृम्ण) बहुधन (सत्पते) सतां विदुषां पालक (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (नः) अस्माकम् (वृधे) वर्धनाय ॥३॥
Connotation: - तमेव वयं प्रशंसामो यः प्रतिदिनमस्माकं रक्षो विधत्ते तमेव वयं सङ्ग्रामे संरक्षेम ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जो प्रत्येक दिवशी आमचे रक्षण करतो त्याचीच आम्ही प्रशंसा करतो. त्याचेच आम्हीही युद्धात रक्षण केले पाहिजे. ॥ ३ ॥