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प्र॒त्नं र॑यी॒णां युजं॒ सखा॑यं कीरि॒चोद॑नम्। ब्रह्म॑वाहस्तमं हुवे ॥१९॥

English Transliteration

pratnaṁ rayīṇāṁ yujaṁ sakhāyaṁ kīricodanam | brahmavāhastamaṁ huve ||

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Pad Path

प्र॒त्नम्। र॒यी॒णाम्। युज॑म्। सखा॑यम्। की॒रि॒ऽचोद॑नम्। ब्रह्म॑ऽवाहःऽतमम्। हु॒वे॒ ॥१९॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:45» Mantra:19 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:19


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्य कैसे जन की प्रशंसा करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (रयीणाम्) धनों के (युजम्) युक्त करानेवाले (कीरिचोदनम्) विद्यार्थियों के प्रेरक (ब्रह्मवाहस्तमम्) अतिशय वेद और ईश्वर की जो विद्या उसके प्राप्त करानेवाले (प्रत्नम्) प्राचीन (सखायम्) सब के मित्र की (हुवे) स्तुति करता हूँ, वैसे इसकी आप लोग भी प्रशंसा करो ॥१९॥
Connotation: - जो सम्पूर्ण जनों के हितकारक, अत्यन्त विद्वान्, सत्य के ग्रहण और असत्य के त्याग के लिये अध्यापन और उपदेश से प्रेरणा करनेवाले, स्थिर मित्र का सत्कार करके प्रशंसा करते हैं, वे ही गुणग्राहक होते हैं ॥१९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्याः कीदृशं जनं प्रशंसेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथाऽहं रयीणां युजं कीरिचोदनं ब्रह्मवाहस्तमं प्रत्नं सखायं हुवे तथैनं यूयमपि प्रशंसत ॥१९॥

Word-Meaning: - (प्रत्नम्) प्राचीनम् (रयीणाम्) धनानाम् (युजम्) योजकम् (सखायम्) सर्वसुहृदम् (कीरिचोदनम्) कीरीणां विद्यार्थिनां प्रेरकम् (ब्रह्मवाहस्तमम्) अतिशयेन वेदेश्वरविद्याप्रापकम् (हुवे) स्तौमि ॥१९॥
Connotation: - ये सार्वजनहितसम्पादकं विद्वत्तमं सत्यग्रहणायाऽसत्यत्यागायऽध्यापनोपदेशाभ्यां प्रेरकं स्थिरमित्रं सत्कृत्य प्रशंसन्ति त एव गुणग्राहका भवन्ति ॥१९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे संपूर्ण लोकांचे हितकर्ते, अत्यंत विद्वान, सत्याचे ग्रहण व असत्याचा त्याग करण्यासाठी अध्यापन व उपदेश याद्वारे प्रेरणा करणारे असतात, स्थिर असलेल्या मित्राचा सत्कार करून प्रशंसा करतात तेच गुणग्राहक असतात. ॥ १९ ॥