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धी॒भिरर्व॑द्भि॒रर्व॑तो॒ वाजाँ॑ इन्द्र श्र॒वाय्या॑न्। त्वया॑ जेष्म हि॒तं धन॑म् ॥१२॥

English Transliteration

dhībhir arvadbhir arvato vājām̐ indra śravāyyān | tvayā jeṣma hitaṁ dhanam ||

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Pad Path

धी॒भिः। अर्व॑त्ऽभिः। अर्व॑तः। वाजा॑न्। इ॒न्द्र॒। श्र॒वाय्या॑न्। त्वया॑। जे॒ष्म॒। हि॒तम्। धन॑म् ॥१२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:45» Mantra:12 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा आदिकों को क्या प्राप्त करके क्या प्राप्त करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) शत्रुओं के नाश करनेवाले ! जैसे हम लोग (धीभिः) बुद्धियों वा कर्म्मों से (अर्वद्भिः) शब्द करते हुए घोड़ों से (वाजान्) वेगयुक्त (श्रवाय्यान्) सुनने को इष्ट (अर्वतः) घोड़ों के सदृश प्राप्त होकर (त्वया) आपके साथ (हितम्) सुखकारक (धनम्) धन को (जेष्म) जीतें, वैसे आप हम लोगों के साथ सुख से वर्त्ताव करो ॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जब राजा आदि जन एक सम्मति कर उत्तम सेना के अङ्गों को सम्पादन कर और अन्यायकारी दुष्टों को जीत कर न्याय से प्राप्त हुए धन से सब का हित करें, तभी अपने हित की सिद्धि से युक्त होवें ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजादिभिः किं प्राप्य किं प्रापणीयमित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यथा वयं धीभिरर्वद्भिर्वाजाञ्छ्रवाय्यानर्वतः प्राप्य त्वया सह हितं धनं जेष्म तथा भवानस्माभिः सह सुखेन वर्त्तताम् ॥१२॥

Word-Meaning: - (धीभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा (अर्वद्भिः) अश्वैः (अर्वतः) अश्वानिव (वाजान्) वेगवतः (इन्द्र) शत्रुविदारक (श्रवाय्यान्) श्रोतुमिष्टान् (त्वया) स्वामिना सह (जेष्म) जयेम (हितम्) सुखकारकम् (धनम्) ॥१२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदा राजादयो जना ऐकमत्यं विधायोत्तमानि सेनाङ्गानि सम्पाद्याऽन्यायकारिणो दुष्टाञ्जित्वा न्यायप्राप्तेन धनेन सर्वहितं कुर्युस्तदैव स्वहितसिद्धा जायेरन् ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा राजा इत्यादी लोक एकमताने सेनेचे निरनिराळे उत्तम विभाग करून अन्यायकारी दुष्टांना जिंकून न्यायाने प्राप्त झालेल्या धनाने सर्वांचे हित करतात तेव्हा त्यांचे स्वतःचे हितही साध्य होते. ॥ १२ ॥