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तद्व॑ उ॒क्थस्य॑ ब॒र्हणेन्द्रा॑योपस्तृणी॒षणि॑। विपो॒ न यस्यो॒तयो॒ वि यद्रोह॑न्ति स॒क्षितः॑ ॥६॥

English Transliteration

tad va ukthasya barhaṇendrāyopastṛṇīṣaṇi | vipo na yasyotayo vi yad rohanti sakṣitaḥ ||

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Pad Path

तत्। वः॒। उ॒क्थस्य॑। ब॒र्हणा॑। इन्द्रा॑य। उ॒प॒ऽस्तृ॒णी॒षणि॑। विपः॑। न। यस्य॑। ऊ॒तयः॑। वि। यत्। रोह॑न्ति। स॒ऽक्षितः॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:44» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:17» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिसके (सक्षितः) तुल्य निवास और (ऊतयः) रक्षण आदि कर्म (विपः) बुद्धिमान् जन (न) जैसे वैसे (यत्) जिसको (वि) विशेष करके (रोहन्ति) जमाते हैं (तत्) उसको (वः) आप लोगों के (उक्थस्य) प्रशंसित कर्म्म के (बर्हणा) बढ़ाने से (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के लिये (उपस्तृणीषणि) ढाँपने योग्य को हम लोग बढ़ावें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो विद्वानों के सदृश प्रजा के रक्षण से ऐश्वर्य्य को बढ़ाते हैं, वे सब प्रकार से बढ़ते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यस्य सक्षित ऊतयो विपो न यद्विरोहन्ति तद्व उक्थस्य बर्हणेन्द्रोयोपस्तृणीषणि वयं वर्धयेम ॥६॥

Word-Meaning: - (तत्) (वः) युष्माकम् (उक्थस्य) प्रशंसितस्य कर्मणः (बर्हणा) वर्धनेन (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (उपस्तृणीषणि) उपाच्छादनीयम् (विपः) मेधावी। विप इति मेधाविनाम। (निघं०३.१५) (न) इव (यस्य) (ऊतयः) रक्षणादीनि कर्माणि (वि) विशेषेण (यत्) (रोहन्ति) (सक्षितः) समाननिवासाः ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! ये विपश्चिद्वत्प्रजारक्षणेनैश्वर्य्यं वर्धयन्ति ते सर्वतो वर्धन्ते ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो, जे विद्वानाप्रमाणे प्रजेचे रक्षण करून ऐश्वर्य वाढवितात ते सर्व प्रकारे वाढतात. ॥ ६ ॥