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आ ते॑ वृष॒न्वृष॑णो॒ द्रोण॑मस्थुर्घृत॒प्रुषो॒ नोर्मयो॒ मद॑न्तः। इन्द्र॒ प्र तुभ्यं॒ वृष॑भिः सु॒तानां॒ वृष्णे॑ भरन्ति वृष॒भाय॒ सोम॑म् ॥२०॥

English Transliteration

ā te vṛṣan vṛṣaṇo droṇam asthur ghṛtapruṣo normayo madantaḥ | indra pra tubhyaṁ vṛṣabhiḥ sutānāṁ vṛṣṇe bharanti vṛṣabhāya somam ||

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Pad Path

आ। ते॒। वृ॒ष॒न्। वृष॑णः। द्रोण॑म्। अ॒स्थुः॒। घृ॒त॒ऽप्रुषः॑। न। ऊ॒र्मयः॑। मद॑न्तः। इन्द्र॑। प्र। तुभ्य॑म्। वृष॑ऽभिः। सु॒ताना॑म्। वृष्णे॑। भ॒र॒न्ति॒। वृ॒ष॒भाय॑। सोम॑म् ॥२०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:44» Mantra:20 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:4» Mantra:20


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वृषन्) बल से युक्त (इन्द्र) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों से सम्पन्न ! जो (ते) आपके (वृषणः) बलिष्ठ (घृतप्रुषः) जल को पूर्ण करनेवाले (ऊर्मयः) समुद्र आदि के जल के तरंग (न) जैसे वैसे आपको (मदन्तः) आनन्द देते हुए (वृषभिः) बलिष्ठ वैद्यों से (सुतानाम्) उत्पन्न किये हुए (सोमम्) बड़ी ओषधियों के रस को (वृष्णे) बल के और (वृषभाय) बल की इच्छा करनेवाले (तुभ्यम्) आपके लिये (प्र, भरन्ति) अच्छे प्रकार धारण करते हैं तथा (द्रोणम्) जाते हैं जिस विमान आदि वाहन से उस पर (आ) सब प्रकार से (अस्थुः) स्थित होते हैं, उनको आप प्रसन्न करिये ॥२०॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो सत्यभाव से आपके राज्य के हित करने की इच्छा करते हैं, उनको आप सुखी रखिये और जैसे वायु से जल के तरङ्ग हैं, वैसे ही सत्संग से बुद्धियाँ बढ़ती हैं, ऐसा जानो ॥२०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे वृषन्निन्द्र ! ये ते वृषणो घृतप्रुष ऊर्मयो न त्वां मदन्तो वृषभिः सुतानां सोमं वृष्णे वृषभाय तुभ्यं प्रभरन्ति द्रोणमास्थुस्तांस्त्वं प्रीणीहि ॥२०॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (ते) तव (वृषन्) बलयुक्त (वृषणः) बलिष्ठ (द्रोणम्) द्रवन्ति येन विमानादियानेन तत् (अस्थुः) आतिष्ठन्ति (घृतप्रुषः) ये घृतमुदकं प्रोषयन्ति पूरयन्ति ते (न) इव (ऊर्मयः) समुद्रादिजलतरङ्गाः (मदन्तः) आनन्दन्तः (इन्द्र) सकलैश्वर्यसम्पन्न (प्र) (तुभ्यम्) (वृषभिः) बलिष्ठैर्वैद्यैः (सुतानाम्) निष्पादितानाम् (वृष्णे) बलाय (भरन्ति) (वृषभाय) बलमिच्छुकाय (सोमम्) महौषधिरसम् ॥२०॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे राजन् ! ये सत्यभावेन तव राज्यस्य हितं चिकीर्षन्ति तांस्त्वं सुखिनो रक्षेर्यथा वायुना जलतरङ्गा उल्लसन्ति तथैव सत्सङ्गेन बुद्धयः समुल्लसन्तीति विद्धि ॥२०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा ! जे खरोखर तुझ्या राज्याचे हित करण्याची इच्छा बाळगतात त्यांना तू सुखी कर व जसे वायूमुळे जलात तरंग असतात तशी सत्संगाने बुद्धी वाढते हे जाण. ॥ २० ॥