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अस्य॑ पिब॒ यस्य॑ जज्ञा॒न इ॑न्द्र॒ मदा॑य॒ क्रत्वे॒ अपि॑बो विरप्शिन्। तमु॑ ते॒ गावो॒ नर॒ आपो॒ अद्रि॒रिन्दुं॒ सम॑ह्यन्पी॒तये॒ सम॑स्मै ॥२॥

English Transliteration

asya piba yasya jajñāna indra madāya kratve apibo virapśin | tam u te gāvo nara āpo adrir induṁ sam ahyan pītaye sam asmai ||

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Pad Path

अस्य॑। पि॒ब॒। यस्य॑। ज॒ज्ञ॒नः। इ॒न्द्र॒। मदा॑य। क्रत्वे॑। अपि॑बः। वि॒ऽर॒प्शि॒न्। तम्। ऊँ॒ इति॑। ते॒। गावः॑। नरः॑। आपः॑। अद्रिः॑। इन्दु॑म्। सम्। अ॒ह्य॒न्। पी॒तये॑। सम्। अ॒स्मै॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:40» Mantra:2 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मनुष्यों को क्या खाना और क्या पीना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (विरप्शिन्) बड़े गुण से विशिष्ट (इन्द्र) राजन् ! (यस्य) जिस (अस्य) इसके (मदाय) आनन्द देनेवाले (क्रत्वे) प्रज्ञान के लिये रस को (अपिबः) पान किया उस रस को आप फिर (जज्ञानः) प्रसिद्ध होते हुए (पिब) पान करिये और जिन (ते) आपके (गावः) किरणों के सदृश (नरः) मनुष्य और (आपः) जल और (अद्रिः) मेघ (इन्दुम्) जल को जैसे वैसे (तम्, उ) उसको ही प्राप्त होते हैं और (अस्मै) इस (पीतये) पान के लिये (सम्, अह्यन्) अच्छे प्रकार व्याप्त होते हुए आप (सम्) उत्तम प्रकार पान करिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जिस भोजन और पान से बुद्धि और बल बढ़े, उसका भोजन और उसका पान करिए और उसका भोजन और पान कराइये और उसका पान न करिये और न कराइये, जिससे बुद्धिभ्रंश होवे ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ नरैः किं भोक्तव्यं किं च पेयमित्याह ॥

Anvay:

हे विरप्शिन्निन्द्र ! यस्यास्य मदाय क्रत्वे रसमपिबस्तस्य रसं त्वं पुनर्जज्ञानः पिब। यस्य ते गावो नर आपोऽद्रिरिन्दुं तमु प्राप्नुवन्ति, अस्मै पीतये समह्यन्त्सँस्त्वं सम्पिब ॥२॥

Word-Meaning: - (अस्य) (पिब) (यस्य) (जज्ञानः) जायमानः (इन्द्र) राजन् (मदाय) आनन्दप्रदाय (क्रत्वे) प्रज्ञानाय (अपिबः) (विरप्शिन्) महान् (तम्) (उ) (ते) तव (गावः) किरणा इव (नरः) नेतारः (आपः) जलानि (अद्रिः) मेघः (इन्दुम्) जलम् (सम्) (अह्यन्) व्याप्नुवन् (पीतये) पानाय (सम्) (अस्मै) ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! येन भुक्तेन पीतेन बुद्धिबले वर्धेयातां तं भुङ्क्ष्व पिब भोजय पायय च तस्य पानं मा कुर्या न कारयेर्येन बुद्धिभ्रंशः स्यात् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! ज्या खानपानामुळे बुद्धी व बल वाढते ते खानपान कर व ज्यामुळे बुद्धिभ्रंश होईल असे खानपान करू नकोस. ॥ २ ॥