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न यं हिंस॑न्ति धी॒तयो॒ न वाणी॒रिन्द्रं॒ नक्ष॒न्तीद॒भि व॒र्धय॑न्तीः। यदि॑ स्तो॒तारः॑ श॒तं यत्स॒हस्रं॑ गृ॒णन्ति॒ गिर्व॑णसं॒ शं तद॑स्मै ॥३॥

English Transliteration

na yaṁ hiṁsanti dhītayo na vāṇīr indraṁ nakṣantīd abhi vardhayantīḥ | yadi stotāraḥ śataṁ yat sahasraṁ gṛṇanti girvaṇasaṁ śaṁ tad asmai ||

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Pad Path

न। यम्। हिंस॑न्ति। धी॒तयः॑। न। वाणीः॑। इन्द्र॑म्। नक्ष॑न्ति। इत्। अ॒भि। व॒र्धय॑न्तीः। यदि॑। स्तो॒तारः॑। श॒तम्। यत्। स॒हस्र॑म्। गृ॒णन्ति॑। गिर्व॑णसम्। शम्। तत्। अ॒स्मै॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:34» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:6» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसा होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (यम्) जिस (इन्द्रम्) पूर्ण विद्यावाले और अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले राजा को (इत्) ही (धीतयः) अङ्गुलियाँ (न) नहीं (हिंसन्ति) नष्ट करती हैं और जिस पूर्णविद्या और अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले राजा को (वाणीः) वाणियाँ (न) नहीं नष्ट करती हैं और जिस पूर्ण विद्यावाले और अत्यन्त ऐश्वर्य्ययुक्त राजा को (वर्धयन्तीः) बढ़ाती हुई अङ्गुलियाँ और वाणियाँ (अभि, नक्षन्ति) प्राप्त होती हैं और (यदि) जो उस (गिर्वणसम्) वाणियों से सेवा करने और माँगनेवाले पूर्ण विद्या और अत्यन्त ऐश्वर्य्ययुक्त राजा की (स्तोतारः) स्तुति करनेवाले जन (गृणन्ति) स्तुति करते हैं तो (यत्) जो (अस्मै) इस स्तुति करनेवाले के लिये (शतम्) सैकड़ों और (सहस्रम्) असंख्य प्रकार का (शम्) सुख प्राप्त होता है (तत्) वह हम लोगों को भी प्राप्त हो ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिसको शत्रु से की हुई विरुद्ध क्रियायें और निन्दित वाणियाँ नहीं पीड़ित करती हैं, उस हर्ष और शोक से सहित राजा को अतुल सुख प्राप्त होता है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृशो भवतीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यमिन्द्रमिद् धीतयो न हिंसन्ति यमिन्द्रं वाणीर्न हिंसन्ति यमिन्द्रं वर्धयन्तीर्धीतयो वाणीश्चाभि नक्षन्ति यदि तं गिर्वणसमिन्द्रं स्तोतारो गृणन्ति तर्हि यदस्मै शतं सहस्रं शं प्राप्नोति तदस्मानपि प्राप्नोतु ॥३॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (यम्) (हिंसन्ति) (धीतयः) अङ्गुलयः (न) (वाणीः) (इन्द्रम्) पूर्णविद्यं परमैश्वर्य्यं राजानम् (नक्षन्ति) गच्छन्ति प्राप्नुवन्ति। नक्षतीति गतिकर्मा। (निघं०२.१४) (इत्) एव (अभि) (वर्धयन्तीः) उन्नयन्त्यः (यदि) (स्तोतारः) (शतम्) (यत्) (सहस्रम्) असंख्यम् (गृणन्ति) स्तुवन्ति (गिर्वणम्) यो गीर्भिर्वनति संभजति वनुते याचते वा तम् (शम्) सुखम् (तत्) (अस्मै) स्तोत्रे ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यं शत्रुकृता विरुद्धाः क्रिया निन्दिता वाचश्च न व्यथयन्ति तं हर्षशोकरहितं राजानमतुलं सुखं प्राप्नोति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! ज्याला शत्रूंची विपरीत क्रिया व निंदित वाणी त्रस्त करीत नाही त्या हर्षशोकरहित राजाला अत्यंत सुख प्राप्त होते. ॥ ३ ॥