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सूरो॒ न यस्य॑ दृश॒तिर॑रे॒पा भी॒मा यदेति॑ शुच॒तस्त॒ आ धीः। हेष॑स्वतः शु॒रुधो॒ नायम॒क्तोः कुत्रा॑ चिद्र॒ण्वो व॑स॒तिर्व॑ने॒जाः ॥३॥

English Transliteration

sūro na yasya dṛśatir arepā bhīmā yad eti śucatas ta ā dhīḥ | heṣasvataḥ śurudho nāyam aktoḥ kutrā cid raṇvo vasatir vanejāḥ ||

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Pad Path

सूरः॑। न। यस्य॑। दृ॒श॒तिः। अ॒रे॒पाः। भी॒मा। यत्। एति॑। शु॒च॒तः। ते॒। आ। धीः। हेष॑स्वतः। शु॒रुधः॑। न। अ॒यम्। अ॒क्तोः। कुत्र॑। चि॒त्। र॒ण्वः। व॒स॒तिः। व॒ने॒ऽजाः ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:3» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:3» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों की बुद्धि कैसी होती है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (यस्य) जिन (हेषस्वतः) प्रसिद्ध शब्द विद्यमान जिसके उन (शुचतः) शोक से व्याकुल (ते) आपका (यत्) जो (दृशतिः) दर्शन और (अरेपाः) पाप से रहित और (भीमा) भयकारक (धीः) बुद्धि (सूरः) सूर्य्य के (न) जैसे वैसे (आ, एति) प्राप्त होती है उसका (अयम्) यह (शुरुधः) अन्धकार को नाश करनेवाले तेज का धारण करनेवाला सूर्य्य (अक्तोः) रात्रि का दूर करनेवाला (न) जैसे वैसे (कुत्रा) (चित्) कहीं भी (रण्वः) सुन्दर (वनेजाः) किरणों के समुदाय में उत्पन्न होने और (वसतिः) निवास करनेवाला वर्त्तमान है, उसकी हम लोग सेवा करें ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिस विद्वान् की सूर्य्य की ज्योति वा बिजुली के सदृश बुद्धि है, वही सम्पूर्ण, जितना योग्य उतने, विज्ञान को प्राप्त होता है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विदुषां बुद्धिः कीदृशी भवतीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यस्य हेषस्वतः शुचतस्ते यद्या दृशतिररेपा भीमा धीस्सूरो न आ एति तस्याऽयं शुरुधोऽक्तोर्निवर्त्तको न कुत्रा चिद्रण्वो वनेजा वसतिर्वत्तते तं वयं सेवेमहि ॥३॥

Word-Meaning: - (सूरः) सूर्य्यः (न) इव (यस्य) (दृशातिः) दर्शनम् (अरेपाः) निष्पापः (भीमा) भयङ्करीः (यत्) या (एति) प्राप्नोति (शुचतः) शोकातुरस्य (ते) (आ) (धीः) प्रज्ञाः (हेषस्वतः) हेषाः प्रसिद्धाः शब्दा विद्यन्ते यस्य तस्य (शुरुधः) यः शुरुमन्धकारहिंसकं तेजो दधाति स सूर्य्यः (न) इव (अयम्) (अक्तोः) रात्रेः (कुत्रा) (चित्) अपि (रण्वः) रमणीयः (वसतिः) यो निवसति सः (वनेजाः) किरणसमुदाये जायते सः ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । यस्य विदुषः सूर्य्यस्य ज्योतिरिव वा विद्युदिव प्रज्ञा वर्त्तते स एव समग्रं यावद्योग्यं तावद्विज्ञानं प्राप्नोति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या विद्वानाची बुद्धी सूर्याच्या ज्योतीप्रमाणे किंवा विद्युल्लतेप्रमाणे असते तो संपूर्ण किंवा जितके योग्य असेल तितके विज्ञान प्राप्त करतो. ॥ ३ ॥