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त्रिं॒शच्छ॑तं व॒र्मिण॑ इन्द्र सा॒कं य॒व्याव॑त्यां पुरुहूत श्रव॒स्या। वृ॒चीव॑न्तः॒ शर॑वे॒ पत्य॑मानाः॒ पात्रा॑ भिन्दा॒ना न्य॒र्थान्या॑यन् ॥६॥

English Transliteration

triṁśacchataṁ varmiṇa indra sākaṁ yavyāvatyām puruhūta śravasyā | vṛcīvantaḥ śarave patyamānāḥ pātrā bhindānā nyarthāny āyan ||

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Pad Path

त्रिं॒शत्ऽश॑तम्। व॒र्मिणः॑। इ॒न्द्र॒। सा॒कम्। य॒व्याऽव॑त्याम्। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। श्र॒व॒स्या। वृ॒चीव॑न्तः। शर॑वे। पत्य॑मानाः। पात्रा॑। भि॒न्दा॒नाः। नि॒ऽअ॒र्थानि॑। आ॒य॒न् ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:27» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:24» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (पुरुहूत) बहुतों से स्तुति किये गये (इन्द्र) सेना के स्वामिन् ! (त्रिंशच्छतम्) तीस सैकड़े (वर्मिणः) कवच को धारण किये हुए (वृचीवन्तः) रोग से आच्छादित करते हुए (शरवे) हिंसन के लिये (पात्रा) शत्रुओं के वाहनों को (भिन्दानाः) विदीर्ण करते और (पत्यमानाः) पति के सदृश आचरण करते हुए (साकम्) साथ (यव्यावत्याम्) यवों से बने पदार्थों के पाक जिसमें उस सेना में सब लोग (श्रवस्या) अन्त में होनेवाले (न्यर्थानि) निश्चित अर्थ जिनमें उन प्रयोजनों को नहीं (आयन्) प्राप्त होते हैं, उनका आप सत्कार करिये ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! जो वीरपुरुष, राजविद्या में निपुण, कार्यों के आरम्भ में दृढ़प्रयोजन सिद्धवस्त्रोंवाले होवें, वे आपसे सेना में सत्कारपूर्वक रखने योग्य हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राज्ञा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे पुरुहूतेन्द्र !ये त्रिंशच्छतं वर्मिणो वृचीवन्तः शरवे पात्रा भिन्दानाः पत्यमानाः साकं व्यव्यावत्यां सर्वे श्रवस्या न्यर्थान्यायँस्तांस्त्वं सत्कुरु ॥६॥

Word-Meaning: - (त्रिंशच्छतम्) त्रिंशच्छतानि यस्मिन् (वर्मिणः) कवचिनः (इन्द्र) सेनेश (साकम्) (यव्यावत्याम्) यवे भवा यव्याः पाका विद्यन्ते यस्यां सेनायाम् (पुरुहूत) बहुभिः स्तुत (श्रवस्या) श्रवस्यन्ते भवानि (वृचीवन्तः) रोगाच्छादितवन्तः (शरवे) हिंसनाय (पत्यमानाः) पतिरिवाचरन्तः (पात्रा) शत्रूणां यानानि (भिन्दानाः) विदृणन्तः (न्यर्थानि) निश्चिता अर्था येषु प्रयोजनेषु तानि (आयन्) प्राप्नुवन्ति ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! ये वीरपुरुषा राजविद्याकुशला दृढारम्भप्रयोजनाः सिद्धवसनाः स्युस्ते भवता सेनायां सत्कृत्य रक्षितव्याः ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जे वीर पुरुष राजविद्येत कुशल व कार्याचा आरंभ करताना दृढ प्रयोजक, योग्य वस्त्रधारक असल्यास त्यांना सेनेत नियुक्त करून त्यांचा सत्कार कर. ॥ ६ ॥