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न यं जर॑न्ति श॒रदो॒ न मासा॒ न द्याव॒ इन्द्र॑मवक॒र्शय॑न्ति। वृ॒द्धस्य॑ चिद्वर्धतामस्य त॒नूः स्तोमेभि॑रु॒क्थैश्च॑ श॒स्यमा॑ना ॥७॥

English Transliteration

na yaṁ jaranti śarado na māsā na dyāva indram avakarśayanti | vṛddhasya cid vardhatām asya tanūḥ stomebhir ukthaiś ca śasyamānā ||

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Pad Path

न। यम्। जर॑न्ति। श॒रदः॑। न। मासाः॑। न। द्यावः॑। इन्द्र॑म्। अ॒व॒ऽक॒र्शय॑न्ति। वृ॒द्धस्य॑। चि॒त्। व॒र्ध॒ता॒म्। अ॒स्य॒। त॒नूः। स्तोमे॑भिः। उ॒क्थैः। च॒। श॒स्यमा॑ना ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:24» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:18» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! जिस (अस्य) इस जीव (वृद्धस्य) वृद्ध विद्वान् का (तनूः) शरीर (स्तोमेभिः) स्तुति करने के योग्यों और इन (उक्थैः) कहने के योग्य पदार्थों से (च) भी (शस्यमाना) प्रशंसा करने योग्य (चित्) भी (वर्धताम्) बढ़े और (यम्) जिस (इन्द्रम्) परमात्मा को (शरदः) शरद् आदि ऋतुयें (न) नहीं (जरन्ति) जीर्ण करती हैं और (मासाः) चैत्र आदि महीने (न) नहीं जीर्ण करते हैं तथा (द्यावः) सूर्य आदि (न) नहीं (अवकर्शयन्ति) दुर्बल कर सकते हैं, उस विद्वान् और परमात्मा का आप लोग सेवन करिये ॥७॥
Connotation: - वही विद्वान् वृद्ध होकर वृद्धि को प्राप्त होता है जो सब को अच्छे, बुद्धिमान्, सुशील तथा धर्म्माचरण करनेवाला करता है और जो निर्विकार और जन्म, मरण, बुढ़ापा आदि दोषों से रहित परमात्मा की उपासना करते हैं, वे प्रशंसा करने योग्य होते हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यस्यास्य वृद्धस्य तनूः स्तोमेभिरुक्थैश्च शस्यमाना चिद्वर्धतां यमिन्द्रं परमात्मानं शरदो न जरन्ति मासा न जरन्ति द्यावो नाऽवकर्शयन्ति तं विद्वांसं परमात्मानं च यूयं सेवध्वम् ॥७॥

Word-Meaning: - (न) निषेधे (यम्) (जरन्ति) जीर्णं कुर्वन्ति (शरदः) शरदाद्या ऋतवः (न) (मासाः) चैत्राद्याः (न) (द्यावः) सूर्यादयः (इन्द्रम्) परमात्मानम् (अवकर्शयन्ति) कृशं कर्तुं शक्नुवन्ति (वृद्धस्य) (चित्) अपि (वर्धताम्) (अस्य) जीवस्य (तनूः) शरीरम् (स्तोमेभिः) स्तुत्यैः (उक्थैः) वक्तुमर्हैः (च) (शस्यमाना) स्तवनीया ॥७॥
Connotation: - स एव विद्वान् वृद्धो भूत्वा वर्धते यः सर्वान्त्सुप्रज्ञान् सुशीलान् धर्माचारान् करोति ये निर्विकारं जन्ममरणजरादिदोषरहितं परमात्मानमुपासते ते प्रशंसनीया जायन्ते ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो सर्वांना चांगले, बुद्धिमान व सुशील बनवितो तोच विद्वान बनून वाढू शकतो व जे निर्विकार, जन्म, मृत्यू, वृद्धत्व इत्यादी दोषरहित परमात्म्याची उपासना करतात ते प्रशंसा करण्यायोग्य असतात. ॥ ७ ॥