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स नो॑ बोधि पुरो॒ळाशं॒ ररा॑णः॒ पिबा॒ तु सोमं॒ गोऋ॑जीकमिन्द्र। एदं ब॒र्हिर्यज॑मानस्य सीदो॒रुं कृ॑धि त्वाय॒त उ॑ लो॒कम् ॥७॥

English Transliteration

sa no bodhi puroḻāśaṁ rarāṇaḥ pibā tu somaṁ goṛjīkam indra | edam barhir yajamānasya sīdoruṁ kṛdhi tvāyata u lokam ||

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Pad Path

सः। नः॒। बो॒धि॒। पु॒रो॒ळाश॑म्। ररा॑णः। पि॒ब॒। तु। सोम॑म्। गोऽऋ॑जीकम्। इ॒न्द्र॒। आ। इ॒दम्। ब॒र्हिः। यज॑मानस्य। सी॒द॒। उ॒रुम्। कृ॒धि॒। त्वा॒ऽय॒तः। ऊँ॒ इति॑। लो॒कम् ॥७॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:23» Mantra:7 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य के धारण करनेवाले (सः) वह आप (पुरोळाशम्) उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न को (रराणः) देते हुए (गोऋजीकम्) इन्द्रिय सरल जिससे उस (सोमम्) बड़ी ओषधियों के रस को (पिबा) पीजिये और (नः) हम लोगों को (बोधि) जानिये और (यजमानस्य) यजमान के (इदम्) इस (बर्हिः) उत्तम आसन पर (आ, सीद) सब प्रकार से विराजिये तथा (उरुम्) बहुत (लोकम्) देखने योग्य को (उ) और (त्वायतः) आपकी कामना करते हुओं को (तु) तो (कृधि) करिये ॥७॥
Connotation: - जो लोग रोग के हरनेवाले भोजनों और जलपानादि को देते हैं और परोपकार करते हैं, वे प्रशंसा करने योग्य हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! स त्वं पुरोळाशं रराणो गोऋजीकं सोमं पिबा [नो]बोधि यजमानस्येदं बर्हिरासीदोरुं लोकमु त्वायतस्तु कृधि ॥७॥

Word-Meaning: - (सः) (नः) अस्मान् (बोधि) बुध्यस्व (पुरोळाशम्) सुसंस्कृतमन्नम् (रराणः) ददन् (पिबा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (तु) (सोमम्) महौषधिरसम् (गोऋजीकम्) गाव इन्द्रियाणि ऋजीकानि सरलानि येन तम् (इन्द्र) ऐश्वर्य्यधर्त्तः (आ) (इदम्) (बर्हिः) उत्तमासनम् (यजमानस्य) (सीद) (उरुम्) बहुम् (कृधि) (त्वायतः) त्वां कामयमानान् (उ) (लोकम्) द्रष्टव्यम् ॥७॥
Connotation: - ये रोगहराणि भोजनानि पानानि च ददति परोपकारं कुर्वन्ति तेऽत्र प्रशंसनीयाः सन्ति ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक रोग नाहीसे करतात. भोजन, जलपान इत्यादी देतात व परोपकार करतात ते प्रशंसा करण्यायोग्य असतात. ॥ ७ ॥