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ब्रह्मा॑णि॒ हि च॑कृ॒षे वर्ध॑नानि॒ ताव॑त्त इन्द्र म॒तिभि॑र्विविष्मः। सु॒ते सोमे॑ सुतपाः॒ शंत॑मानि॒ रान्द्र्या॑ क्रियास्म॒ वक्ष॑णानि य॒ज्ञैः ॥६॥

English Transliteration

brahmāṇi hi cakṛṣe vardhanāni tāvat ta indra matibhir viviṣmaḥ | sute some sutapāḥ śaṁtamāni rāṇḍyā kriyāsma vakṣaṇāni yajñaiḥ ||

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Pad Path

ब्रह्मा॑णि। हि। च॒कृ॒षे। वर्ध॑नानि। ताव॑त्। ते॒। इ॒न्द्र॒। म॒तिऽभिः॑। वि॒वि॒ष्मः॒। सु॒ते। सोमे॑। सु॒त॒ऽपाः॒। शम्ऽत॑मानि। रान्द्र्या॑। क्रि॒या॒स्म॒। वक्ष॑णानि। य॒ज्ञैः ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:23» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) प्रतापयुक्त ! जितने (वर्धनानि) वृद्धि करनेवाले (ब्रह्माणि) धनों को आप (चकृषे) करते हो (तावत्) उतने (ते) आपके लिये (मतिभिः) उत्तम मनुष्यों के साथ हम लोग (विविष्मः) व्याप्त होवें तथा (सुतपाः) पदार्थों की रक्षा करनेवाला तथा (हि) निश्चय कर हम लोग (सुते) उत्पन्न हुए (सोमे) ऐश्वर्य में (यज्ञैः) धनप्रापक व्यवहारों से निश्चय कर (शन्तमानि) अत्यन्त सुखकारक (रान्द्र्या) रमण करने योग्यों को (वक्षणानि) प्राप्त करानेवाले (क्रियास्म) करें ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि उत्तम आचरण को देख के वैसा ही आचरण करें और सब मिल के ऐश्वर्य को प्राप्त होकर न्याय से प्रजा की रक्षा करें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यावन्ति वर्धनानि ब्रह्माणि त्वं चकृषे तावत्ते मतिभिस्सहिता वयं विविष्मः। सुतपा हि वयञ्च सुते सोमे यज्ञैः शन्तमानि रान्द्र्या वक्षणानि क्रियास्म ॥६॥

Word-Meaning: - (ब्रह्माणि) धनानि (हि) (चकृषे) करोषि (वर्धनानि) वृद्धिकराणि (तावत्) (ते) तुभ्यम् (इन्द्र) (मतिभिः) उत्तमैर्मनुष्यैः सह (विविष्मः) व्याप्नुमः (सुते) (सोमे) ऐश्वर्ये (सुतपाः) यः सुतान् पदार्थान् पाति (शन्तमानि) अतिशयेन सुखकराणि (रान्द्र्या) रान्द्र्याणि रन्तुं योग्यानि (क्रियास्म) (वक्षणानि) प्रापकाणि (यज्ञैः) धनप्रापकैर्व्यवहारैः ॥६॥
Connotation: - मनुष्यैरुत्तमाचरणं दृष्ट्वा तादृशमेवाऽऽचरणीयम्। सर्वैर्मिलित्वैश्वर्यं प्राप्य न्यायेन प्रजा रक्षणीया ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी उत्तम आचरण पाहून तसेच आचरण करावे व सर्वांनी मिळून ऐश्वर्य प्राप्त करून न्यायाने प्रजेचे रक्षण करावे. ॥ ६ ॥