Go To Mantra

सु॒त इत्त्वं निमि॑श्ल इन्द्र॒ सोमे॒ स्तोमे॒ ब्रह्म॑णि श॒स्यमा॑न उ॒क्थे। यद्वा॑ यु॒क्ताभ्यां॑ मघव॒न्हरि॑भ्यां॒ बिभ्र॒द्वज्रं॑ बा॒ह्वोरि॑न्द्र॒ यासि॑ ॥१॥

English Transliteration

suta it tvaṁ nimiśla indra some stome brahmaṇi śasyamāna ukthe | yad vā yuktābhyām maghavan haribhyām bibhrad vajram bāhvor indra yāsi ||

Mantra Audio
Pad Path

सु॒ते। इत्। त्वम्। निऽमि॑श्लः। इ॒न्द्र॒। सोमे॑। स्तोमे॑। ब्रह्म॑णि। श॒स्यमा॑ने। उ॒क्थे। यत्। वा॒। यु॒क्ताभ्या॑म्। म॒घ॒ऽव॒न्। हरि॑ऽभ्याम्। बिभ्र॑त्। वज्र॑म्। बा॒ह्वोः। इ॒न्द्र॒। यासि॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:23» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब दश ऋचावाले तेईसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रविषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) शत्रुओं के नाशक ! जो (त्वम्) आप (स्तोमे) प्रशंसा के निमित्त (ब्रह्मणि) धन में (निमिश्लः) अत्यन्त मिले हुए (सोमे) ऐश्वर्य के (सुते) उत्पन्न होने पर (शस्यमाने) प्रशंसा करने योग्य और (उक्थे) सुनने वा कहने योग्य में (युक्ताभ्याम्) जुड़े हुए (हरिभ्याम्) हरणशील मनुष्यों से (बाह्वोः) भुजाओं में (वज्रम्) वज्र को (बिभ्रत्) धारण करते हुए (यासि) जाते हो और (यत्) जो (वा) वा हे (मघवन्) बहुत धनों से युक्त (इन्द्र) परमश्वर्य्यप्रद ! आप प्राप्त होते हैं, वह आप (इत्) ही सत्कार करने योग्य हैं ॥१॥
Connotation: - जो राजा नहीं प्रमाद करते, पिता के सदृश प्रजाओं का पालन करते और शस्त्रों को धारण करते हुए तथा दुष्टों का निवारण करते हुए हैं, उनका राज्य स्थिर होता है ॥१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रविषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यस्त्वं स्तोमे ब्रह्मणि निमिश्लः सोमे सुते शस्यमान उक्थे युक्ताभ्यां हरिभ्यां बाह्वोर्वज्रं बिभ्रद् यासि यद्वा हे मघवन्निन्द्र ! त्वमायासि स त्वमित् सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१॥

Word-Meaning: - (सुते) निष्पन्ने (इत्) एव (त्वम्) (निमिश्लः) नितरां मिश्रः (इन्द्र) शत्रुविदारक (सोमे) ऐश्वर्ये (स्तोमे) प्रशंसायाम् (ब्रह्मणि) धने (शस्यमाने) प्रशंसनीये (उक्थे) श्रोतुं वक्तुमर्हे वा (यत्) यः (वा) (युक्ताभ्याम्) (मघवन्) बहुधनयुक्त (हरिभ्याम्) हरणशीलाभ्यां मनुष्याभ्याम् (बिभ्रत्) धरन् (वज्रम्) (बाह्वोः) भुजयोः (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (यासि) गच्छसि ॥१॥
Connotation: - ये राजानोऽप्रमाद्यन्तः पितृवत्प्रजाः पालयन्तः शस्त्रभृतः सन्तो दुष्टान्निवारयन्तः सन्ति तेषां राज्यं स्थिरं भवति ॥१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, विद्वान, राजा व प्रजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे राजे प्रमाद करीत नाहीत, पित्याप्रमाणे प्रजेचे पालन करतात व शस्त्र धारण करतात, दुष्टांचे निवारण करतात त्यांचे राज्य स्थिर होते. ॥ १ ॥