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तन्नो॒ वि वो॑चो॒ यदि॑ ते पु॒रा चि॑ज्जरि॒तार॑ आन॒शुः सु॒म्नमि॑न्द्र। कस्ते॑ भा॒गः किं वयो॑ दुध्र खिद्वः॒ पुरु॑हूत पुरूवसोऽसुर॒घ्नः ॥४॥

English Transliteration

tan no vi voco yadi te purā cij jaritāra ānaśuḥ sumnam indra | kas te bhāgaḥ kiṁ vayo dudhra khidvaḥ puruhūta purūvaso suraghnaḥ ||

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Pad Path

तत्। नः॒। वि। वो॒चः॒। यदि॑। ते॒। पु॒रा। चि॒त्। ज॒रि॒तारः॑। आ॒न॒शुः। सु॒म्नम्। इ॒न्द्र॒। कः। ते॒। भा॒गः। किम्। वयः॑। दु॒ध्र॒। खि॒द्वः॒। पुरु॑ऽहूत। पु॒रु॒व॒सो॒ इति॑ पुरुऽवसो। अ॒सु॒र॒ऽघ्नः ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:22» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:13» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (दुध्र) दुःख से धारण करने योग्य और (पुरुहूत) बहुतों से सत्कार किये गये (पुरूवसो) बहुत धनों से युक्त (इन्द्र) विद्या और गुणों की स्तुति करनेवाले ! (यदि) जो आप (नः) हम लोगों के लिये (तत्) उसको (वि, वोचः) विशेष कहिये जिसको (चित्) निश्चित (ते) आपके (पुरा) पहिले भी (जरितारः) विद्या और गुणों की स्तुति करनेवाले (सुम्नम्) सुख का (आनशुः) भोग करते हैं (ते) आपका (कः) कौन (असुरघ्नः) दुष्ट कर्मकारियों का नाश करनेवाला (भागः) अंश (खिद्वः) दीन और (किम्) कौन (वयः) जीवन है, इसको आप कहिये ॥४॥
Connotation: - हे विद्वन् ! आपको वह विज्ञान हम लोगों के लिये देने योग्य है, जिससे विद्वान् जन आनन्द करते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे दुध्र पुरुहूत पुरूवसो इन्द्र ! यदि त्वं नस्तद्वि वोचो यच्चित्ते पुरा जरितारः सुम्नमानशुस्ते कोऽसुरघ्नो भागः खिद्वः किं वयोऽस्तीति त्वं वोचः ॥४॥

Word-Meaning: - (तत्) (नः) अस्मान् (वि) (वोचः) अवोचो वदेः (यदि) (ते) (पुरा) (चित्) अपि (जरितारः) विद्यागुणस्तावकाः (आनशुः) अश्नन्ति (सुम्नम्) सुखम् (इन्द्र) विद्योपदेशकर्त्तः (कः) (ते) तव (भागः) (किम्) (वयः) जीवनम् (दुध्र) दुःखेन धर्तुं योग्य (खिद्वः) दीनः (पुरुहूत) बहुभिः सत्कृत (पुरूवसो) बहुधन (असुरघ्नः) दुष्टकर्मकारिणां हन्ता ॥४॥
Connotation: - हे विद्वन् ! त्वया तद्विज्ञानमस्मभ्यं देयं येन विद्वांस आनन्दन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वाना! ज्यायोगे विद्वान लोक आनंदी होतात ते विज्ञान तू आम्हाला दे. ॥ ४ ॥