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स तु श्रु॑धीन्द्र॒ नूत॑नस्य ब्रह्मण्य॒तो वी॑र कारुधायः। त्वं ह्या॒३॒॑पिः प्र॒दिवि॑ पितॄ॒णां शश्व॑द्ब॒भूथ॑ सु॒हव॒ एष्टौ॑ ॥८॥

English Transliteration

sa tu śrudhīndra nūtanasya brahmaṇyato vīra kārudhāyaḥ | tvaṁ hy āpiḥ pradivi pitṝṇāṁ śaśvad babhūtha suhava eṣṭau ||

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Pad Path

सः। तु। श्रु॒धि॒। इ॒न्द्र॒। नूत॑नस्य। ब्र॒ह्म॒ण्य॒तः। वी॒र॒। का॒रु॒ऽधा॒यः॒। त्वम्। हि। आ॒पिः। प्र॒ऽदिवि॑। पि॒तॄ॒णाम्। शश्व॑त्। ब॒भूथ॑। सु॒ऽहवः॑। आऽइ॑ष्टौ ॥८॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:21» Mantra:8 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वीर) दुष्टों के नाश करने और (कारुधायः) शिल्पी विद्वानों के धारण करनेवाले (इन्द्र) न्याय के स्वामी विद्वन् ! (त्वम्) आप (नूतनस्य) नवीन की (एष्टौ) सब प्रकार से यज्ञक्रिया में (सुहवः) उत्तम प्रकार ज्ञान और विज्ञानवाले (शश्वत्) निरन्तर (बभूथ) हूजिये (सः) वह आप (तु) तो (हि) निश्चय से (पितॄणाम्) पितृओं अर्थात् पालकों की (प्रदिवि) प्रकृष्ट कामना में (आपिः) व्याप्त होनेवाले हुए (ब्रह्मण्यतः) धन प्राप्ति की इच्छा करते हुओं का सत्कार करिये और उनके वचनों को (श्रुधि) सुनिये ॥८॥
Connotation: - वही उत्तम विद्वान् है, जो ज्ञानवृद्ध जनों से विद्यासम्बन्धी वचनों को सुन के उत्तम शिल्पजनों की रक्षा करके सदा अपेक्षित पदार्थ की प्राप्ति से सुखी होता है ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे वीर कारुधाय इन्द्र ! त्वं नूतनस्यैष्टौ सुहवः शश्वद्बभूथ स त्वं तु हि पितॄणां प्रदिव्यापिः सन् ब्रह्मण्यतः सत्कुरु तेषां वचांसि श्रुधि ॥८॥

Word-Meaning: - (सः) (तु) (श्रुधि) (इन्द्र) न्यायेश विद्वन् (नूतनस्य) (ब्रह्मण्यतः) ब्रह्म धनं प्राप्तुमिच्छतः (वीर) दुष्टानां विनाशक (कारुधायः) कारूणां विदुषां धर्तः (त्वम्) (हि) खलु (आपिः) यः प्राप्नोति (प्रदिवि) प्रकृष्टायां कामनायाम् (पितॄणाम्) पालकानाम् (शश्वत्) निरन्तरम् (बभूथ) भवेः (सुहवः) सुष्ठु ज्ञानविज्ञानः (एष्टौ) समन्ताद् यज्ञक्रियायाम् ॥८॥
Connotation: - स एवोत्तमो विद्वान् यो ज्ञानवृद्धेभ्यो विद्यावचांसि श्रुत्वोत्तमाञ्छिल्पिनो रक्षित्वा सदेष्टसुखी भवति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो ज्ञानवृद्ध लोकांकडून विद्येसंबंधीचे वचन ऐकून उत्तम कारागिरांचे रक्षण करतो, सदैव अपेक्षित पदार्थांची प्राप्ती करून सुखी होतो, तोच उत्तम विद्वान असतो. ॥ ८ ॥