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तं पृ॒च्छन्तोऽव॑रासः॒ परा॑णि प्र॒त्ना त॑ इन्द्र॒ श्रुत्यानु॑ येमुः। अर्चा॑मसि वीर ब्रह्मवाहो॒ यादे॒व वि॒द्म तात्त्वा॑ म॒हान्त॑म् ॥६॥

English Transliteration

tam pṛcchanto varāsaḥ parāṇi pratnā ta indra śrutyānu yemuḥ | arcāmasi vīra brahmavāho yād eva vidma tāt tvā mahāntam ||

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Pad Path

तम्। पृ॒च्छन्तः॑। अव॑रासः। परा॑णि। प्र॒त्ना। ते॒। इ॒न्द्र॒। श्रुत्या॑। अनु॑। ये॒मुः॒। अर्चा॑मसि। वी॒र॒। ब्र॒ह्म॒ऽवाहः॑। यात्। ए॒व। वि॒द्म। तात्। त्वा॒। म॒हान्त॑म् ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:21» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वीर) शूरता आदि गुणों से युक्त (इन्द्र) विद्वन् ! जो (अवरासः) आधुनिक जिज्ञासु अर्थात् ब्रह्म को जानने की इच्छा करनेवाले जन (तम्) उन (महान्तम्) महाशय (त्वा) आपको (पृच्छन्तः) पूँछते हुए हैं (ते) वे (पराणि) उत्तरकाल में वर्त्तमान और (प्रत्ना) पूर्वकाल में स्थित (श्रुत्या) वेद में प्रतिपादित विषयों को (अनु, येमुः) अनुकूल नियम में लाते हैं, उनका हम लोग (अर्चामसि) सत्कार करते हैं और हे (ब्रह्मवाहः) धन और धान्य को प्राप्त करानेवाले विद्वान् ! हम लोग (यात्) जितनों को (विद्म) जानें (तात्) उतनों (एव) ही को आप लोग जानिये ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! आप लोगों को मित्रतापूर्वक मेल कर तथा पूर्व और पर विज्ञानों को प्राप्त होकर अत्यन्त सुख को प्राप्त होना चाहिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे वीरेन्द्र ! येऽवरासस्तं महान्तं त्वा पृच्छन्तस्ते पराणि प्रत्ना श्रुत्याऽनु येमुस्तान् वयमर्चामसि। हे ब्रह्मवाहो विद्वांसो ! वयं याद्विद्म तादेव यूयं विजानीत ॥६॥

Word-Meaning: - (तम्) (पृच्छन्तः) (अवरासः) अर्वाचीना जिज्ञासवः (पराणि) उत्तरकालस्थानि (प्रत्ना) पूर्वकालीनि (ते) तव (इन्द्र) विद्वन् (श्रुत्या) श्रुतौ भवानि (अनु) (येमुः) नियच्छन्ति (अर्चामसि) अर्चामः सत्कुर्मः (वीर) शौर्यादिगुणोपेत (ब्रह्मवाहः) ये ब्रह्म धनं धान्यं प्रापयन्ति ते (यात्) यावन्ति। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति वलोपः, शेश्छन्दसि बहुलमिति शेर्लोपः। (एव) (विद्म) जानीयाम (तात्) तावन्ति (त्वा) त्वाम् (महान्तम्) महाशयम् ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! युष्माभिर्मित्रत्वेन मिलित्वा पूर्वापराणि विज्ञानानि प्राप्य पुष्कलं सुखं प्राप्तव्यम् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! तुम्ही मैत्री करून एकत्रित येऊन पूर्वीचे व नंतरचे विज्ञान जाणून अत्यंत सुख प्राप्त केले पाहिजे. ॥ ६ ॥