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प्र श्ये॒नो न म॑दि॒रमं॒शुम॑स्मै॒ शिरो॑ दा॒सस्य॒ नमु॑चेर्मथा॒यन्। प्राव॒न्नमीं॑ सा॒प्यं स॒सन्तं॑ पृ॒णग्रा॒या समि॒षा सं स्व॒स्ति ॥६॥

English Transliteration

pra śyeno na madiram aṁśum asmai śiro dāsasya namucer mathāyan | prāvan namīṁ sāpyaṁ sasantam pṛṇag rāyā sam iṣā saṁ svasti ||

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Pad Path

प्र। श्ये॒नः। न। म॒दि॒रम्। अं॒शुम्। अ॒स्मै॒। शिरः॑। दा॒सस्य॑। नमु॑चेः। म॒था॒यन्। प्र। आ॒व॒त्। नमी॑म्। सा॒प्यम्। स॒सन्त॑म्। पृ॒णक्। रा॒या। सम्। इ॒षा। सम्। स्व॒स्ति ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:20» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा को किसका निषेध करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो राजा (मदिरम्) मादक द्रव्य और (अंशुम्) वैद्यकविद्या की रीति से विभाग किये गये का सेवन करते हुए और (नमुचेः) नहीं त्याग करनेवाले (दासस्य) सेवक के (शिरः) मस्तक को (श्येनः) बाज पक्षी (न) जैसे वैसे (प्र, मथायन्) अत्यन्त मथन करता हुआ (अस्मै) इसके लिये कठिन शिष्य को (नमीम्) नम्र (साय्यम्) कर्म के अन्त करनेवाले को (ससन्तम्) सोते हुए को करके (प्र, आवत्) रक्षा करे और (राया) धन से (स्वस्ति) सुख को (सम्, पृणक्) उत्तम प्रकार पूर्ण करता है तथा (इषा) अन्न आदि से सुख को (सम्) अच्छे प्रकार पूर्ण करता है, वह सम्राट् होने के योग्य होवे ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। राजाओं का यह उचित कर्म है कि जो मादक द्रव्य का सेवन करें उनको अत्यन्त दण्ड देके, यथायोग्य सत्कार से अप्रमादियों का सत्कार करें, वे साम्राज्य करने को योग्य होवें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राज्ञा किं निषेधनीयमित्याह ॥

Anvay:

यो राजा मदिरमंशुं सेवमानस्य नमुचेर्दासस्य शिरः श्येनो न प्र मथायन्नस्मै कठिनं शिष्यन्नमीं साय्यं ससन्तं कृत्वा प्राऽऽवत्। राया स्वस्ति सम्पृणगिषा स्वस्ति सम्पृणक् स सम्राड् भवितुमर्हेत् ॥६॥

Word-Meaning: - (प्र) (श्येनः) (नः) इव (मदिरम्) मादकं द्रव्यम् (अंशुम्) वैद्यकविद्यारीत्या विभक्तम् (अस्मै) (शिरः) मस्तकम् (दासस्य) सेवकस्य (नमुचेः) यो नमुञ्चति तस्य (मथायन्) (प्र) (आवत्) रक्षेत् (नमीम्) नम्रम् (साय्यम्) कर्मान्तकारिणम् (ससन्तम्) शयानम् (पृणक्) पृणक्ति (राया) धनेन (सम्) (इषा) अन्नादिना (सम्) (स्वस्ति) सुखम् ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। राज्ञामिदमुचितं कर्मास्ति ये मादकद्रव्यं सेवेरँस्तान् भृशं दण्डयित्वा यथायोग्यसत्कारेणऽप्रमादिनः सत्कुर्य्युस्ते साम्राज्यं कर्तुमर्हेयुः ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. राजाचे हे कर्तव्य आहे की जे मादक द्रव्य घेतात त्यांना दंड देऊन प्रमाद न करणाऱ्या लोकांचा यथायोग्य सत्कार करावा. असे लोक साम्राज्य स्थापन करू शकतात. ॥ ६ ॥