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स॒नेम॒ तेऽव॑सा॒ नव्य॑ इन्द्र॒ प्र पू॒रवः॑ स्तवन्त ए॒ना य॒ज्ञैः। स॒प्त यत्पुरः॒ शर्म॒ शार॑दी॒र्दर्द्धन्दासीः॑ पुरु॒कुत्सा॑य॒ शिक्ष॑न् ॥१०॥

English Transliteration

sanema te vasā navya indra pra pūravaḥ stavanta enā yajñaiḥ | sapta yat puraḥ śarma śāradīr dard dhan dāsīḥ purukutsāya śikṣan ||

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Pad Path

स॒नेम॑। ते। अव॑सा। नव्यः॑। इ॒न्द्र॒। प्र। पू॒रवः॑। स्त॒व॒न्ते॒। ए॒ना। य॒ज्ञैः। स॒प्त। यत्। पुरः॑। शर्म॑। शार॑दीः। दर्त्। हन्। दासीः॑। पु॒रु॒ऽकुत्सा॑य। शिक्ष॑न् ॥१०॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:20» Mantra:10 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य और सुख के देनेवाले ! (ते) आपके (अवसा) रक्षण आदि से हम लोग (सप्त) सात (पुरः) नगरियों का (सनेम) विभाग करें और जैसे (पूरवः) मनुष्य (एना) इस (अवसा) रक्षण आदि से और (यज्ञैः) श्रेष्ठ व्यवहाररूप यज्ञों से (स्तवन्ते) स्तुति करते हैं इससे (नव्यः) नवीनों में हुए आप उनसे स्तुति करिये और (यत्) जो (शर्म) गृह और (शारदीः) शरत्काल में हुई (दासीः) सेविकाओं को प्राप्त होके (पुरुकुत्साय) बहुत शस्त्रवाले के लिये (शिक्षन्) शिक्षा देता हुआ दुःखों को (प्र, दर्त्) नष्ट करता है और शत्रुओं को (हन्) मारता है, वह सब से सत्कार करने योग्य है ॥१०॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे राजा विनय से वर्त्तमान है, वैसे ही सब वर्त्तमान होवें और पुरुषार्थ से सुन्दर पुरों का निर्माण करके उन सब ऋतुओं में सुख देनेवालों में निवास करते हुए दुःखों को दूर फेंकें ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! तेऽवसा वयं सप्त पुरः सनेम यथा पूरव एनाऽवसा यज्ञैः स्तवन्ते तेन नव्यस्त्वं तैः स्तुहि यद्यः शर्म शारदीर्दासीः प्राप्य पुरुकुत्साय शिक्षन् सन् दुःखानि प्र दर्त्, शत्रून् हन्त्स सर्वैः सत्कर्तव्यः ॥१०॥

Word-Meaning: - (सनेम) विभजेम (ते) तव (अवसा) रक्षणादिना (नव्यः) नवीनेषु भवः (इन्द्र) परमैश्वर्यसुखप्रद (प्र) (पूरवः) मनुष्याः (स्तवन्ते) (एना) एनेन (यज्ञैः) सद्व्यवहारमयैः (सप्त) (यत्) यः (पुरः) नगरीः (शर्म) गृहम् (शारदीः) शरदि भवाः (दर्त्) विदृणाति (हन्) हन्ति (दासीः) सेविकाः (पुरुकुत्साय) बहुशस्त्राय (शिक्षन्) ॥१०॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथा राजा विनयेन वर्तते तथैव सर्वे वर्त्तन्ताम्, पुरुषार्थेन सुन्दराणि पुराणि च निर्माय तेषु सर्वर्त्तु सुप्रखदेषु निवसन्तो दुःखानि दूरे प्रक्षिपन्तु ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जसा राजा विनयी असतो तसेच सर्वांनी व्हावे. पुरुषार्थाने नगरांची निर्मिती करून सर्व ऋतूंत सुख देणाऱ्या गृहात निवास करून दुःख दूर करावे. ॥ १० ॥