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त्वे॒षस्ते॑ धू॒म ऋ॑ण्वति दि॒वि षञ्छु॒क्र आत॑तः। सूरो॒ न हि द्यु॒ता त्वं कृ॒पा पा॑वक॒ रोच॑से ॥६॥

English Transliteration

tveṣas te dhūma ṛṇvati divi ṣañ chukra ātataḥ | sūro na hi dyutā tvaṁ kṛpā pāvaka rocase ||

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Pad Path

त्वे॒षः। ते॒। धू॒मः। ऋ॒ण्व॒ति॒। दि॒वि। सन्। शु॒क्रः। आऽत॑तः। सूरः॑। न। हि। द्यु॒ता। त्वम्। कृ॒पा। पा॒व॒क॒। रोच॑से ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:2» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह अग्नि कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (ते)उसका (सूरः) सूर्य्य (न) जैसे वैसे (त्वेषः) प्रदीप्त (धूमः) धूम (शुक्रः) शुद्धि का करनेवाला (आततः) व्याप्त (सन्) होता हुआ (दिवि) प्रकाश में (ऋण्वति) चलता है, वैसे (हि) ही (त्वम्) आप (द्युता) प्रकाश और (कृपा) कृपा से (पावक) अग्नि के सदृश वर्त्तमान हुए (रोचसे) प्रकाशित होते हो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे विद्वान् जनो ! जिस अग्नि के धूम से वायु आदि पदार्थ शुद्ध होते हैं और जो सूर्य्य आदि का कारण है, उसकी विद्या को प्राप्त होकर उत्तम गुणों में आप लोग प्रकाशित हूजिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सोऽग्निः कीदृश इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा ते सूरो न त्वेषो धूमः शुक्र आततः सन् दिव्यृण्वति तथा हि त्वं द्युता कृपा पावक इव वर्त्तमानः सन् रोचसे ॥६॥

Word-Meaning: - (त्वेषः) प्रदीप्तः (ते) तस्य। अत्र पुरुषव्यत्ययः। (धूमः) (ऋण्वति) गच्छति। ऋण्वतीति गतिकर्मा। (निघं०२.४) (दिवि) प्रकाशे (सन्) वर्त्तमानः (शुक्रः) शुद्धिकरः (आततः) व्याप्तः (सूरः) सूर्यः (न) इव (हि) एव (द्युता) प्रकाशेन (त्वम्) (कृपा) कृपया (पावक) पावक इव वर्त्तमान (रोचसे) प्रकाशसे ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ । हे विद्वांसो ! यस्याग्नेर्धूमेन वाय्वादयः पदार्थाः शुद्धा जायन्ते यत् सूर्य्यादेः कारणमस्ति तद्विद्यां प्राप्य शुभगुणेषु भवन्तः प्रकाशन्ताम् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे विद्वानांनो ! ज्या अग्नीच्या धुराने वायू इत्यादी पदार्थ शुद्ध होतात, जो सूर्य इत्यादीचे कारण आहे, त्याची विद्या प्राप्त करून उत्तम गुणांनी प्रसिद्ध व्हा. ॥ ६ ॥