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स हि धी॒भिर्हव्यो॒ अस्त्यु॒ग्र ई॑शान॒कृन्म॑ह॒ति वृ॑त्र॒तूर्ये॑। स तो॒कसा॑ता॒ तन॑ये॒ स व॒ज्री वि॑तन्त॒साय्यो॑ अभवत्स॒मत्सु॑ ॥६॥

English Transliteration

sa hi dhībhir havyo asty ugra īśānakṛn mahati vṛtratūrye | sa tokasātā tanaye sa vajrī vitantasāyyo abhavat samatsu ||

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Pad Path

सः। हि। धी॒भिः। हव्यः॑। अस्ति॑। उ॒ग्रः। ई॒शा॒न॒ऽकृत्। म॒ह॒ति। वृ॒त्र॒ऽतूर्ये॑। सः। तो॒कऽसा॑ता। तन॑ये। सः। व॒ज्री। वि॒त॒न्त॒साय्यः॑। अ॒भ॒व॒त्। स॒मत्ऽसु॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:18» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जैसे (सः) वह (धीभिः) ज्ञान व बुद्धियों से (हव्यः) ग्रहण करने योग्य (महति) बड़े (वृत्रतूर्य्ये) संग्राम में (ईशानकृत्) ईश्वरता करनेवालों को पुरुषार्थी करनेवाला (अस्ति) है और (सः) वह (तोकसाता) सन्तानों के विभाग होने में (तनये) पुत्र के लिये (उग्रः) तेजस्वी और (सः) वह (हि) ही (वितन्तसाय्यः) अत्यन्त विस्तार करने योग्य (वज्री) शस्त्र हैं बाहुओं में जिसके ऐसा (समत्सु) संग्रामों में (अभवत्) होता है, वैसे आप करिये ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। राजा को चाहिये कि सब कर्म्मचारियों को योग्य सिद्ध करे, जिससे सर्वदा विजय होवे ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राज्ञा किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यथा स धीभिर्हव्यो महति वृत्रतूर्य्ये ईशानकृदस्ति स तोकसाता तनय उग्रः स हि वितन्तसाय्यो वज्री समत्स्वभवत् तथा त्वं विधेहि ॥६॥

Word-Meaning: - (सः) (हि) (धीभिः) प्रज्ञाभिर्बुद्धिभिर्वा (हव्यः) आदातुमर्हः (अस्ति) (उग्रः) तेजस्वी (ईशानकृत्) य ईशानानीशनशीलान् पुरुषार्थिनः करोति (महति) (वृत्रतूर्य्ये) सङ्ग्रामे (सः) (तोकसाता) तोकानामपत्यानां विभाजने (तनये) पुत्राय (सः) (वज्री) शस्त्रबाहुः (वितन्तसाय्यः) भृशं विस्तारणीयः (अभवत्) भवति (समत्सु) संग्रामेषु ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। राज्ञा सर्वे राजकर्म्मचारिणो योग्याः सम्पादनीया यतः सर्वदा विजयः स्यात् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. राजाने सर्व कर्मचाऱ्यांची योग्यता सिद्ध करावी, ज्यामुळे सदैव विजय प्राप्त व्हावा. ॥ ६ ॥