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तमु॑ ष्टुहि॒ यो अ॒भिभू॑त्योजा व॒न्वन्नवा॑तः पुरुहू॒त इन्द्रः॑। अषा॑ळ्हमु॒ग्रं सह॑मानमा॒भिर्गी॒र्भिर्व॑र्ध वृष॒भं च॑र्षणी॒नाम् ॥१॥

English Transliteration

tam u ṣṭuhi yo abhibhūtyojā vanvann avātaḥ puruhūta indraḥ | aṣāḻham ugraṁ sahamānam ābhir gīrbhir vardha vṛṣabhaṁ carṣaṇīnām ||

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Pad Path

तम्। ऊँ॒ इति॑। स्तु॒हि॒। यः। अ॒भिभू॑तिऽओजाः। व॒न्वन्। अवा॑तः। पु॒रु॒ऽहू॒तः। इन्द्रः॑। अषा॑ळ्हम्। उ॒ग्रम्। सह॑मानम्। आ॒भिः। गीः॒ऽभिः। व॒र्ध॒। वृ॒ष॒भम्। च॒र्ष॒णी॒नाम् ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:18» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पन्द्रह ऋचावाले अठारहवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! (यः) जो (अभिभूत्योजाः) अभिभव अर्थात् शत्रुओं के पराजय करने के लिये पराक्रम से युक्त (अवातः) नहीं हिंसित (पुरुहूतः) बहुतों से प्रशंसित (वन्वन्) विभाग करता हुआ (इन्द्रः) दुःख को विदीर्ण करनेवाला है (तम्) उस (अषाळ्हम्) नहीं सहने योग्य (उग्रम्) तीव्र स्वभाववाले और (चर्षणीनाम्) मनुष्यों में (वृषभम्) अतिश्रेष्ठ और (सहमानम्) शत्रुओं के वेग को सहनेवाले की (आभिः) इन (गीर्भिः) वाणियों से (स्तुहि) स्तुति करिये (उ) और उससे (वर्ध) वृद्धि को प्राप्त हूजिये ॥१॥
Connotation: - हे राजन् ! आप सदा स्तुति करने योग्य की स्तुति करिये, निन्दा करने योग्य की निन्दा करिये तथा सत्कार करने योग्य का सत्कार करिये और दण्ड देने योग्य को दण्ड दीजिये ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

Anvay:

हे राजन् ! योऽभिभूत्योजा अवातः पुरुहूतो वन्वन्निन्द्रोऽस्ति तमषाळ्हमुग्रं चर्षणीनां वृषभं सहमानमाभिर्गीभिः स्तुह्यु तेन वर्ध ॥१॥

Word-Meaning: - (तम्) (उ) (स्तुहि) (यः) (अभिभूत्योजाः) अभिभूतये शत्रूणां पराभवायौजः पराक्रमो यस्य सः (वन्वन्) विभजन् (अवातः) अहिंसितः (पुरुहूतः) बहुभिः प्रशंसितः (इन्द्रः) दुःखविदारकः (अषाळ्हम्) असोढव्यम् (उग्रम्) तीव्रस्वभावम् (सहमानम्) शत्रूणां वेगस्य सोढारम् (आभिः) (गीभिः) वाग्भिः (वर्ध) वर्धस्व। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (वृषभम्) अतिश्रेष्ठम् (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् ॥१॥
Connotation: - हे राजंस्त्वं सदा स्तोतव्यं स्तुहि निन्दनीयं निन्द सत्कर्त्तव्यं सत्कुरु दण्डनीयं दण्डय ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, विद्वान व राजा यांच्या गुणांचे वर्णन केलेले असून या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे राजा ! तू स्तुती करण्यायोग्य असलेल्याचीच स्तुती कर. निंदा करण्यायोग्य असलेल्याची निंदा कर व सत्कारायोग्य असलेल्याचा सत्कार कर आणि दंड देण्यायोग्य असलेल्यास दंड दे. ॥ १ ॥