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ते त्वा॒ मदा॑ बृ॒हदि॑न्द्र स्वधाव इ॒मे पी॒ता उ॑क्षयन्त द्यु॒मन्त॑म्। म॒हामनू॑नं त॒वसं॒ विभू॑तिं मत्स॒रासो॑ जर्हृषन्त प्र॒साह॑म् ॥४॥

English Transliteration

te tvā madā bṛhad indra svadhāva ime pītā ukṣayanta dyumantam | mahām anūnaṁ tavasaṁ vibhūtim matsarāso jarhṛṣanta prasāham ||

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Pad Path

ते। त्वा॒। मदाः॑। बृ॒हत्। इ॒न्द्र॒। स्व॒धा॒ऽवः॒। इ॒मे। पी॒ताः। उ॒क्ष॒य॒न्त॒। द्यु॒ऽमन्त॑म्। म॒हाम्। अनू॑नम्। त॒वस॑म्। विऽभू॑तिम्। म॒त्स॒रासः॑। ज॒र्हृ॒ष॒न्त॒। प्र॒ऽसाह॑म् ॥४॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:17» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:6» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा और प्रजा जन परस्पर कैसा वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (स्वधावः) बहुत अन्न से युक्त और (इन्द्र) ऐश्वर्य्ययुक्त ! जो (इमे) ये (पीताः) पान किये गये (मदाः) आनन्द और (मत्सरासः) आनन्द करते हुए जन (द्युमन्तम्) बहुत मनोरथों से युक्त (महाम्) बड़े (अनूनम्) न्यूनता से रहित (तवसम्) बलिष्ठ (विभूतिम्) बड़े ऐश्वर्य्य से युक्त (प्रसाहम्) अत्यन्त सहनेवाले को (बृहत्) बहुत (उक्षयन्त) सेचन करते हैं और (जर्हृषन्त) अत्यन्त प्रसन्न हों (ते) वे (त्वा) आप का सत्कार करें ॥४॥
Connotation: - जिन सज्जनों का राजा सत्कार करें, वे राजाओं को भी प्रसन्न करें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्त्तेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे स्वधाव इन्द्र ! य इमे पीता मदा मत्सरासो द्युमन्तं महामनूनं तवसं विभूतिं प्रसाहं बृहदुक्षयन्त जर्हृषन्त ते त्वा सत्कुर्वन्तु ॥४॥

Word-Meaning: - (ते) (त्वा) त्वाम् (मदाः) हर्षाः (बृहत्) महत् (इन्द्र) ऐश्वर्ययुक्त (स्वधावः) स्वधा बह्वन्नं विद्यते यस्य तत् सम्बुद्धौ (इमे) (पीताः) (उक्षयन्त) सिञ्चन्ति (द्युमन्तम्) बहुकामयुक्तम् (महाम्) महान्तम् (अनूनम्) ऊनतारहितम् (तवसम्) बलिष्ठम् (विभूतिम्) महदैश्वर्य्यम् (मत्सरासः) आनन्दन्तः सन्तः (जर्हृषन्त) भृशं हृष्यन्तु (प्रसाहम्) प्रकर्षेण सोढारम्। अत्र संहितायामिति दीर्घः ॥४॥
Connotation: - यान् सज्जनान् राजानः सत्कुर्य्युस्ते राज्ञः प्रसादयेयुः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजा ज्यांचा सत्कार करतो त्यांनी राजे लोकांनाही प्रसन्न करावे. ॥ ४ ॥