Go To Mantra

वी॒ती यो दे॒वं मर्तो॑ दुव॒स्येद॒ग्निमी॑ळीताध्व॒रे ह॒विष्मा॑न्। होता॑रं सत्य॒यजं॒ रोद॑स्योरुत्ता॒नह॑स्तो॒ नम॒सा वि॑वासेत् ॥४६॥

English Transliteration

vītī yo devam marto duvasyed agnim īḻītādhvare haviṣmān | hotāraṁ satyayajaṁ rodasyor uttānahasto namasā vivāset ||

Mantra Audio
Pad Path

वी॒ती। यः। दे॒वम्। मर्तः॑। दु॒व॒स्येत्। अ॒ग्निम्। ई॒ळी॒त॒। अ॒ध्व॒रे। ह॒विष्मा॑न्। होता॑रम्। स॒त्य॒ऽयज॑म्। रोद॑स्योः। उ॒त्ता॒नऽह॑स्तः। न॒म॒सा। वि॒वा॒से॒त् ॥४६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:16» Mantra:46 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:30» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:46


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को किस की उपासना करनी चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! (यः) जो (हविष्मान्) बहुत दान करनेवाला (उत्तानहस्तः) ऊपर स्थित हाथ जिसके ऐसा (मर्त्तः) मनुष्य (वीती) कामना से (अध्वरे) अहिंसा आदि लक्षणयुक्त योग में जिस (होतारम्) दान करनेवाले (सत्ययजम्) सत्य प्राप्त करानेवाले (देवम्) मनोहर (अग्निम्) अग्नि के सदृश स्वयं प्रकाशित परमात्मा का (दुवस्येत्) सेवन करे और (रोदस्योः) अन्तरिक्ष और पृथिवी के (नमसा) सत्कार से (आ, विवासेत्) अच्छे प्रकार सेवन करे, उस परमात्मा की आप लोग (ईळीत) प्रशंसा करो ॥४६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस जगदीश्वर की योगी जन उपासना करते हैं, उसकी आप लोग भी उपासना करो ॥४६॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः क उपासनीय इत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यो हविष्मानुत्तानहस्तो मर्त्तो वीत्यध्वरे यं होतारं सत्ययजं देवमग्निं दुवस्येत् रोदस्योर्नमसाऽऽविवासेत् तद्वत्तं परमात्मानं यूयमीळीत ॥४६॥

Word-Meaning: - (वीती) कामनया (यः) (देवम्) कमनीयम् (मर्त्तः) मनुष्यः (दुवस्येत्) सेवेत (अग्निम्) पावकमिव स्वप्रकाशं परमात्मानम् (ईळीत) प्रशंसत (अध्वरे) अहिंसादिलक्षणे योगे (हविष्मान्) बहूनि हवींषि दानानि विद्यन्ते यस्य सः (होतारम्) दातारम् (सत्ययजम्) यस्सत्यं यजति सङ्गमयति तम् (रोदस्योः) द्यावापृथिव्योः (उत्तानहस्तः) उत्तानावुपरिस्थौ हस्तौ यस्य सः (नमसा) सत्कारेण (आ) समन्तात् (विवासेत्) सेवेत ॥४६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यं जगदीश्वरं योगिन उपासते तं यूयमप्युपाध्वम् ॥४६॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! ज्या जगदीश्वराची योगी लोक उपासना करतात त्याची तुम्हीही उपासना करा. ॥ ४६ ॥