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प्र वः॑ सखायो अ॒ग्नये॒ स्तोमं॑ य॒ज्ञं च॑ धृष्णु॒या। अर्च॒ गाय॑ च वे॒धसे॑ ॥२२॥

English Transliteration

pra vaḥ sakhāyo agnaye stomaṁ yajñaṁ ca dhṛṣṇuyā | arca gāya ca vedhase ||

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Pad Path

प्र। वः॒। स॒खा॒यः॒। अ॒ग्नये॑। स्तोम॑म्। य॒ज्ञम्। च॒। धृ॒ष्णु॒ऽया। अर्च॑। गाय॑। च॒। वे॒धसे॑ ॥२२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:16» Mantra:22 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:25» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:22


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सखायः) मित्रो ! जो (वः) आप लोगों की (स्तोमम्) स्तुति और (यज्ञम्) सत्य व्यवहार को (च) भी उत्पन्न करता है, उसका आप लोग सत्कार करो और हे विद्वन् ! जो आप में जैसे मित्र, वैसे वर्त्तता है उस (वेधसे) बुद्धिमान् (अग्नये) अग्नि के समान वर्त्तमान के लिये आप (धृष्णुया) दृढ़ता के साथ (प्र, अर्च) अच्छे प्रकार सत्कार करिये (गाय, च) और प्रशंसा करिये ॥२२॥
Connotation: - सूर्य्य ही यज्ञफलों की प्राप्ति का साधक है, वैसे यथार्थ कहने और करनेवाले धर्म्मात्मा जन परोपकार में कुशल होते हैं, ऐसा जानकर संसार में वर्त्ताव करे ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे सखायो ! योः वः स्तोमं यज्ञं च निष्पादयति तं यूयं सत्कुरुत। हे विद्वन् ! यस्त्वयि मित्रवद्वर्त्तते तस्मै वेधसेऽग्नये त्वं धृष्णुया प्रार्च गाय च ॥२२॥

Word-Meaning: - (प्र) (वः) युष्माकम् (सखायः) (अग्नये) अग्निवद्वर्त्तमानाय। अत्र तादर्थ्ये चतुर्थी। (स्तोमम्) स्तुतिम् (यज्ञम्) सत्यं व्यवहारम् (च) (धृष्णुया) दृढत्वेन (अर्च) सत्कुरु (गाय) प्रशंस (च) (वेधसे) मेधाविने ॥२२॥
Connotation: - सूर्य्य एव यज्ञफलावाप्तिसाधकोऽस्ति तथाऽऽप्ता धर्म्मात्मानः परोपकारकुशला भवन्तीति विज्ञाय जगति वर्त्तेत ॥२२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सूर्यच यज्ञफल प्राप्तीचा साधक आहे. तसे विद्वान धर्मात्मा परोपकार करण्यास कुशल असतात, हे जाणून जगात वागावे. ॥ २२ ॥