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तं त्वा॑ स॒मिद्भि॑रङ्गिरो घृ॒तेन॑ वर्धयामसि। बृ॒हच्छो॑चा यविष्ठ्य ॥११॥

English Transliteration

taṁ tvā samidbhir aṅgiro ghṛtena vardhayāmasi | bṛhac chocā yaviṣṭhya ||

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Pad Path

तम्। त्वा॒। स॒मित्ऽभिः॑। अ॒ङ्गि॒रः॒। घृ॒तेन॑। व॒र्ध॒या॒म॒सि॒। बृ॒हत्। शो॒च॒। य॒वि॒ष्ठ्य॒ ॥११॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:16» Mantra:11 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:23» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:2» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य परस्पर क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ्य) अत्यन्त युवा जनों में साधु (अङ्गिरः) बिजुली के समान वर्त्तमान ! जैसे यज्ञ करनेवाले जन (समिद्भिः) उत्तम प्रकार प्रकाशक समिध्रूप काष्ठों और (घृतेन) घृत से अग्नि की वृद्धि करते हैं, वैसे ज्ञान के कारण उपदेश से (तम्) उन (त्वा) आपकी हम लोग (वर्धयामसि) वृद्धि करते हैं और आप (बृहत्) बहुत (शोचा) विचारिये ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा आदि जन जैसे घृत से अग्नि की, वैसे शिक्षा और सत्कार से शूर जनों की वृद्धि करते हैं, वे सदा विजय को प्राप्त होते हैं ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः परस्परं किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे यविष्ठयाङ्गिरो ! यथर्त्विजः समिद्भिर्घृतेनाग्निं वर्धयन्ति तथा ज्ञानकारणोपदेशेन तं त्वा वयं वर्धयामसि त्वं बृहच्छोचा ॥११॥

Word-Meaning: - (तम्) (त्वा) त्वाम् (समिद्भिः) सम्यक्प्रदीपकैः (अङ्गिरः) विद्युदिव वर्त्तमान (घृतेन) आज्येन (वर्धयामसि) वर्धयामः (बृहत्) महत् (शोचा) विचारय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (यविष्ठ्य) अतिशयेन युवसु साधो ॥११॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये राजादयो जना घृतेनाग्निमिव शिक्षासत्काराभ्यां शूरान् वर्धयन्ति ते सदा विजयमाप्नुवन्ति ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा घृताने अग्नी प्रवृद्ध होतो तसे जे राजे इत्यादी लोक शिक्षण व सत्काराने शूर लोकांची वृद्धी करतात ते सदैव विजय मिळवितात. ॥ ११ ॥