Go To Mantra

अ॒भि प्रयां॑सि॒ सुधि॑तानि॒ हि ख्यो नि त्वा॑ दधीत॒ रोद॑सी॒ यज॑ध्यै। अवा॑ नो मघव॒न्वाज॑साता॒वग्ने॒ विश्वा॑नि दुरि॒ता त॑रेम॒ ता त॑रेम॒ तवाव॑सा तरेम ॥१५॥

English Transliteration

abhi prayāṁsi sudhitāni hi khyo ni tvā dadhīta rodasī yajadhyai | avā no maghavan vājasātāv agne viśvāni duritā tarema tā tarema tavāvasā tarema ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒भि। प्रयां॑सि। सुऽधि॑तानि। हि। ख्यः। नि। त्वा॒। द॒धी॒त॒। रोद॑सी॒ इति॑। यज॑ध्यै। अव॑। नः॒। म॒घ॒ऽव॒न्। वाज॑ऽसातौ॑। अग्ने॑। विश्वा॑नि। दुः॒ऽइ॒ता। त॒रे॒म॒। ता। त॒रे॒म॒। तव॑। अव॑सा। त॒रे॒म॒ ॥१५॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:15» Mantra:15 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:15


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मघवन्) अत्यन्त श्रेष्ठ धन से युक्त (अग्ने) अतितेजस्वी ! जो आप (सुधितानि) उत्तम प्रकार तृप्ति करनेवाले (प्रयांसि) कामना करने योग्य अन्न आदि वस्तुओं को (हि) निश्चित (नि, दधीत) अच्छे प्रकार धारण करें और आप विज्ञानों को (अभि, ख्यः) सम्मुख कहते हो और आप (यजध्यै) मेल करने को (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को धारण करिये तथा (वाजसातौ) संग्राम में (नः) हम लोगों की (अवा) रक्षा करिये जिन (त्वा) आप का आश्रय करके हम लोग (ता) उन (विश्वानि) सम्पूर्ण (दुरिता) दुःख के प्राप्त करानेवाले पापों का (तरेम) उल्लङ्घन करें (तव) आपके (अवसा) रक्षण आदि से (तरेम) दुःखसागर के पार जावें और निरन्तर (तरेम) सम्पूर्ण दोषों का त्याग करें ॥१५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो अन्न और पानादिक जीवन के हितकारक पदार्थों को धारण करता, अन्तर्यामी होने से सत्य का उपदेश करता, उसके आश्रय से ही सम्पूर्ण दुःखों के पार प्राप्त होओ ॥१५॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मघवन्नग्ने ! यो भवान् सुधितानि प्रयांसि हि निदधीत त्वं विज्ञानान्यभि ख्यो भवान् यजध्यै रोदसी दधीत वाजसातौ नोऽस्मानवा यं त्वाऽऽश्रित्य वयं ता विश्वानि दुरिता तरेम तवावसा दुःखात् तरेम सततं तरेम ॥१५॥

Word-Meaning: - (अभि) (प्रयांसि) कमनीयान्यन्नादीनि वस्तूनि (सुधितानि) सुष्ठु तृप्तिकराणि (हि) (ख्यः) प्रकथयसि (नि) (त्वा) (दधीत) धरेत् (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (यजध्यै) सङ्गन्तुम् (अवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्मान् (मघवन्) परमपूजितधनयुक्त (वाजसातौ) सङ्ग्रामे (अग्ने) अतितेजस्विन् (विश्वानि) सर्वाणि (दुरिता) दुःखस्य प्रापकाणि पापानि (तरेम) उल्लङ्घेमहि (ता) तानि (तरेम) दुःखसागरस्य पारं गच्छेम (तव) (अवसा) रक्षणादिना (तरेम) सर्वान् दोषाँस्त्यजेम ॥१५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! योऽन्नपानादीनि जीवनहितानि विदधात्यन्तर्य्यामितया सत्यमुपदिशति तदाश्रयेणैव सर्वेभ्यो दुःखेभ्यः पारं गच्छत ॥१५॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जो अन्नपान इत्यादी जीवनाचे हितकारक पदार्थ धारण करतो. अन्तर्यामी असल्यामुळे सत्याचा उपदेश करतो त्याच्या आश्रयानेच संपूर्ण दुःखातून पार पडा. ॥ १५ ॥