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द॒श॒स्या नः॑ पुर्वणीक होतर्दे॒वेभि॑रग्ने अ॒ग्निभि॑रिधा॒नः। रा॒यः सू॑नो सहसो वावसा॒ना अति॑ स्रसेम वृ॒जनं॒ नांहः॑ ॥६॥

English Transliteration

daśasyā naḥ purvaṇīka hotar devebhir agne agnibhir idhānaḥ | rāyaḥ sūno sahaso vāvasānā ati srasema vṛjanaṁ nāṁhaḥ ||

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Pad Path

दृ॒श॒स्य। नः॒। पु॒रु॒ऽअ॒णी॒क॒। हो॒तः॒। दे॒वेभिः॑। अ॒ग्ने॒। अ॒ग्निऽभिः॑। इ॒धा॒नः। रा॒यः। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। व॒व॒सा॒नाः। अति॑। स्र॒से॒म॒। वृ॒जन॑म्। न। अंहः॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:11» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:13» Mantra:6 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पुर्वणीक) अनेक सेनाओं से युक्त (होतः) दान करनेवाले (सहसः) बलवान् के (सूनो) सन्तान (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान राजन् ! (देवेभिः) निरन्तर प्रकाशमान (अग्निभिः) अग्नि के समान वर्त्तमान वीरजनों से (इधानः) प्रकाशमान अग्नि जैसे वैसे आप (नः) हम लोगों के लिये (रायः) धनों को (दशस्या) देते हैं जिससे वह दशस् है उस अपने की इच्छा करिये, जिससे (वावसानाः) ढाँपे गये हम लोग (वृजनम्) वर्जने योग्य बल को (न) जैसे वैसे (अंहः) अपराध को (अति) (स्रसेम) अतिक्रमण करें ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे अग्नि इन्धनों से बढ़ता है, वैसे आप लोग पुरुषार्थ से बढ़िये और जैसे मनुष्य शत्रु का शीघ्र त्याग करते हैं, वैसे अन्यायाचरणरूप पाप का शीघ्र त्याग करो ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुणवर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह ग्यारहवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे पुर्वणीक होतः सहसः सूनोऽग्ने ! देवेभिरग्निभिरिधानोऽग्निरिव त्वं नो रायो दशस्या यतो वावसाना वयं वृजनं नांऽहोऽति स्रसेम ॥६॥

Word-Meaning: - (दशस्या) दाशति ददति येन तद्दशस्तदात्मानमिच्छ। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (पुर्वणीक) पुरूण्यनीकानि सैन्यानि यस्य तत्सम्बुद्धौ (होतः) दातः (देवेभिः) देदीप्यमानैः (अग्ने) पावक इव राजन् (अग्निभिः) अग्निवद्वर्त्तमानैर्वीरैः (इधानः) देदीप्यमानः (रायः) धनानि (सूनो) सन्तान (सहसः) बलवतः (वावसानाः) आच्छाद्यमानाः (अति) (स्रसेम) गच्छेम (वृजनम्) वर्जनीयं बलम् (न) इव (अंहः) अपराधं पापं वा ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथाग्निरिन्धनैर्वर्धते तथा यूयं पुरुषार्थेन वर्धध्वं यथा मनुष्याः शत्रुं सद्यस्त्यजन्ति तथाऽन्यायाचरणं पापं क्षिप्रं त्यजतेति ॥६॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकादशं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जसा अग्नी इंधनाने वाढतो तसे तुम्ही पुरुषार्थाने वाढा व जशी माणसे शत्रूंचा त्याग करतात तसे अन्यायाचरणरूपी पापाचा ताबडतोब त्याग करा. ॥ ६ ॥