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पु॒रो वो॑ म॒न्द्रं दि॒व्यं सु॑वृ॒क्तिं प्र॑य॒ति य॒ज्ञे अ॒ग्निम॑ध्व॒रे द॑धिध्वम्। पु॒र उ॒क्थेभिः॒ स हि नो॑ वि॒भावा॑ स्वध्व॒रा क॑रति जा॒तवे॑दाः ॥१॥

English Transliteration

puro vo mandraṁ divyaṁ suvṛktim prayati yajñe agnim adhvare dadhidhvam | pura ukthebhiḥ sa hi no vibhāvā svadhvarā karati jātavedāḥ ||

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Pad Path

पु॒रः। वः॒। म॒न्द्रम्। दि॒व्यम्। सु॒ऽवृ॒क्तिम्। प्र॒ऽय॒ति। य॒ज्ञे। अ॒ग्निम्। अ॒ध्व॒रे। द॒धि॒ध्व॒म्। पु॒रः। उ॒क्थेभिः॑। सः। हि। नः॒। वि॒भाऽवा॑। सु॒ऽअ॒ध्व॒रा। क॒र॒ति॒। जा॒तऽवे॑दाः ॥१॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:10» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:6» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! आप लोग (वः) आप लोगों के (प्रयति) प्रयत्न से साध्य (अध्वरे) अहिंसनीय (यज्ञे) सङ्गतिस्वरूप यज्ञ में (उक्थेभिः) कहने के योग्यों से (पुरः) प्रथम (मन्द्रम्) आनन्द देनेवाले वा प्रशंसनीय (दिव्यम्) शुद्ध (सुवृक्तिम्) उत्तम प्रकार चलते हैं जिससे उस (अग्निम्) विद्युदादिस्वरूप अग्नि को (दधिध्वम्) धारण करिये और जो (हि) निश्चय करके (विभावा) विशेष करके प्रकाशक (जातवेदाः) प्रकट हुओं को जाननेवाला (नः) हम लोगों को (पुरः) प्रथम (स्वध्वरा) उत्तम प्रकार अहिंसा आदि धर्मों से युक्त (करति) करे (सः) वही हम लोगों से सत्कार करने योग्य है ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे यज्ञ करनेवाले यज्ञ में अग्नि को प्रथम उत्तम प्रकार स्थापित करके उस अग्नि में आहुति देकर संसार का उपकार करते हैं, वैसे ही आत्मा के आगे परमात्मा को संस्थापित करके वहाँ मन आदि का हवन करके और प्रत्यक्ष करके उसके उपदेश से जगत् का उपकार करो ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यूयं वः प्रयत्यध्वरे यज्ञ उक्थेभिः पुरो मन्द्रं दिव्यं सुवृक्तिमग्निं दधिध्वं यो हि विभावा जातवेदा नोऽस्मान् पुरः स्वध्वरा करति सह्यस्माभिः सर्त्कतव्योऽस्ति ॥१॥

Word-Meaning: - (पुरः) पुरस्तात् (वः) युष्माकम् (मन्द्रम्) आनन्दप्रदं प्रशंसनीयं वा (दिव्यम्) शुद्धम् (सुवृक्तिम्) सुष्ठु व्रजन्ति येन तम् (प्रयति) प्रयत्नसाध्ये (यज्ञे) सङ्गतिमये (अग्निम्) विद्युदादिस्वरूपम् (अध्वरे) अहिंसनीये (दधिध्वम्) (पुरः) पुरस्तात् (उक्थेभिः) वक्तुमर्हैः (सः) (हि) यतः (नः) अस्मान् (विभावा) विशेषेण प्रकाशकः (स्वध्वरा) सुष्ठु अहिंसादिधर्मयुक्तान् (करति) कुर्य्यात् (जातवेदाः) यो जातान् सर्वान् वेत्ति सः ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथर्त्त्विजो यज्ञेऽग्निं पुरस्तात् संस्थाप्य तत्राहुतिं दत्त्वा जगदुपकुर्वन्ति तथैवात्मनः पुरः परमात्मानं संस्थाप्य तत्र मनआदीनि हुत्वा साक्षात्कृत्य तदुपदेशेन जगदुपकारं कुर्वन्तु ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो! जसे ऋत्विज यज्ञात उत्तम प्रकारे अग्नी स्थापन करून त्यात आहुती देतात व जगावर उपकार करतात तसेच आत्म्यामध्ये परमात्म्याला संस्थापित करून मन इत्यादीचे हवन करून साक्षात्कार करून त्याच्या उपदेशाने जगावर उपकार करावा. ॥ १ ॥